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________________ (255) 6. व्रतकल्प व्रत का अर्थ है विरति।' अर्थात् हटना। असत् प्रवृत्तियों से हटना विरति है। करण, निवृत्ति, उपरम और विरति एकार्थक शब्द है। ( सभी साधुओं को पंच महाव्रतों का अप्रमत्त रहकर, मन-वचन-काया से पालन करना चाहिये। भ. पार्श्वनाथ तक चातुर्याम (व्रतों) की व्यवस्था थी, जब कि भगवान महावीर ने 7. ज्येष्ठ कल्प जैन परम्परा गुणप्रधान होने पर भी पुरुष ज्येष्ठ है। संभवतः इसके पीछे हमारे देश की पुरुष प्रधान सभ्यता का प्रभाव है। शतवर्ष दीक्षिता साध्वी भी अद्यदीक्षित मुनि को भक्तिभावना से नमन करती है।' ___ ज्येष्ठकल्प का दूसरा अर्थ भी है-भगवान् महावीर के आचार-दर्शन में दीक्षा * दो प्रकार की मानी गई है-1. छोटी दीक्षा 2. बड़ी दीक्षा। छोटी दीक्षा परीक्षा रूप है। इसमें मुनिवेश ग्रहण करके सामायिक चारित्र लिया जाता है। उसके पश्चात् योग्यतानुसार बड़ी दीक्षा दी जाती है। इसे छेदोपस्थापनीय चारित्र कहा जाता है। इसके आधार पर ही श्रमण ज्येष्ठ व कनिष्ठ माना जाता है। छेदोपस्थापनीय में पंचमहाव्रत आरोपित किये जाते है। भगवान् पार्श्व के समय मात्र सामायिक चारित्र था, जबकि भगवान् महावीर ने छेदोपस्थापनीय चारित्र का विधान किया। 8. प्रतिक्रमणकल्प प्रतिक्रमण जैन साधु का आवश्यक अंग है। प्रतिदिन सायंकाल एवं प्रातःकाल प्रतिक्रमण करना प्रतिक्रमण कल्प है। भगवान महावीर के पूर्व पार्श्वनाथ भगवान् आदि 22 तीर्थंकरों की परम्परा में दोष लगने पर ही प्रायश्चित स्वरूप प्रतिक्रमण किया जाता था। भगवान् महावीर के शासन में दोनों समय प्रतिक्रमण का विधान है। 1. तत्त्वार्थ 7.2 2. तत्त्वार्थ भाष्य 7.1 3. उत्तरा. 23, सूत्रकृतांग 2.16 4. कल्पसमर्थन गाथा 17 पत्र. 2 5. उत्तरा, 23.12, आचा. 2.15 6. आव. नि. गा. 1244
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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