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________________ (250) बौद्ध परंपरा में भी इसे स्वीकार किया गया है। आचार्य शांतरक्षित के कथनानुसार सब देहधारियों को जैसे सुख वैसे यह शरीर मैंने न्यौछावर कर दिया है। वे अब चाहे इसकी हत्या करें, निन्दा करें अथवा इस पर धूल फर्के, चाहे खेले, और विलास करें। मुझे इसकी क्या चिन्ता? मैंने शरीर उन्हें दे डाला है। यहाँ इस कथन में कायोत्सर्ग की झलक मिलती है। विपश्यना आदि में भी देह के प्रति ममत्व हटाने की साधना है। वैदिक परम्परा में गीता का ध्यान-योग इसी को पुष्ट करता है। गीता में उल्लेख है कि शुद्ध भूमि में कुशा, मृगछाला और वस्त्र है, उपरोपरि अपने आसन को न अति ऊँचा और न अति नीचा, स्थिर स्थापित करके काया, सिर और ग्रीवाको समान और अचल धारण किये हुए दृढ़ होकर अपने नासिका के अग्रभाग को देखकर अन्य दिशाओं को न देखता हुआ और ब्रह्मचर्य के व्रत में स्थिर रहा हुआ, भय रहित और अच्छी तरह से शान्त अन्तःकरणवाला और सावधान होकर, मन को वश में करके मेरे में लगे हुए चित्तवाला और मेरे में परायण हुआ स्थित होवे। इस प्रकार सभी परम्पराओं में प्रकारान्तर से कायोत्सर्ग विधि को अपनाया है। काया का बारबार उत्सर्ग शारीरिक, मानसिक और आत्मिक दृष्टि से लाभदायक है। 6. प्रत्याख्यान (गुणधारण-आगे के लिए त्याग, नियम ग्रहण आदि) प्रत्याख्यान शब्द का अर्थ है-परित्याग करना। यद्यपि साधु सर्व-विरत होता है, तथापि आहारादि का अमुक समय विशेष के लिए त्याग करना प्रत्याख्यान आवश्यक है। इसके करने से मन, वचन और काया की दूषित प्रवृत्तियाँ रूक जाती हैं और फिर कर्मों का आस्रवद्वार भी बंद हो जाता है।' आवश्यक के प्रकारों में प्रत्याख्यान का समावेश इसलिये किया गया है कि साधक आत्मशुद्धि के लिए प्रतिदिन यथाशक्ति किसी न किसी प्रकार का त्याग करे। नियमित त्याग करने से अभ्यास होता है, साधना परिपुष्ट होती है और जीवन में अनासक्ति का विकास और तृष्णा मंद होती है। इसीलिए भद्रबाहू स्वामी ने आवश्यक नियुक्ति में उल्लेख किया है कि प्रत्याख्यान से संयम होता 1. बोधिचर्यावतार 3-12-13 2. गीता 6.11, 13-14 3. उत्तरा. 29.13
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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