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________________ (229) का आश्रित बनकर नहीं जीता, वह तप-संयम में स्वश्रम (पुरुषार्थ) के बल परआगे बढ़ता है।श्रमण जो भी तप करता है, वह कर्मक्षय के उद्देश्य से ही करता है। निदान करने से कर्मक्षय नहीं होता, इसलिए श्रमण का लक्षण 'अनिदान' बताया गया है। श्रमण संयम और तप में जितना पराक्रम करता है, वह कर्मक्षय के लिए करता है, अतः 'प्राणातिपात आदि जिन-जिन से कर्मबन्ध होता है, उनका वह शमन (विरति) करता है, उनसे दूर रहता है। क्रोधादि कषायों एवं रागद्वेष आदि का शमन करता है। कषायों के कारण से दूर रहकर 'समन' समत्व में स्थित रहता है। भिक्षु' - ___'माहन' और श्रमण के वर्णित गुणों से संयुक्त भिक्षु में अन्य विशिष्ट गुण भी हैं-वह अनुन्नत (निरभिमानी) हो, (गुरु आदि के प्रति) विनीत हो, (अथवा ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि के प्रति विनयशील हो), किन्तु भाव से अवनत (दीन मनवाला) न हो, नामक (विनय से, अष्ट प्रकार से अपनी आत्मा को नमाने वाला, अथवा सबके प्रति नम्र व्यवहारवाला) हो, दान्त हो, भव्य हो, कायममत्व रहित हो, नाना प्रकार के परीषहों और उपसर्गों का समभावपूर्वक सामना करके सहने वाला हो, अध्यात्म योग (धर्मध्यान) से जिसका चारित्र (आदान) शुद्ध हो, जो सच्चारित्र पालन में उद्यत-उपस्थित हो, जो स्थितात्मा (स्थितप्रज्ञ अथवा जिसकी आत्मा अपने शुद्ध भाव में स्थित है, या मोक्ष मार्ग में स्थिरचित्त) हो तथा संसार की असारता जानकर जो परदत्त भोजी (गृहस्थ द्वारा प्रदत्त आहार से निर्वाह करने वाला) हो, उस साधु को 'भिक्षु' कहना चाहिए। ___ उक्त सूत्र में भिक्षु के विशिष्ट गुणों का निरूपण किया गया है। भिक्षु का सामान्य अर्थ है-भिक्षाजीवी। परन्तु त्यागी भिक्षु न तो भीख माँगने वाला होता है, न ही वह पेशेवर भिखारी और न ही भिक्षा से पेट पालकर अपने शरीर को हृष्टपुष्ट बनाकर, आलसी एवं निकम्मा बनकर पड़े रहना उसका उद्देश्य होता है। जब हम भिक्षु के विशिष्ट गुणात्मक स्वरूप की समीक्षा करते हैं तो भिक्षु के लिए निर्दिष्ट सभी विशिष्ट गुण यथार्थ सिद्ध होते हैं। निर्ग्रन्थ भिक्षु का विशिष्ट गुण है'परदत्तभोजी।' इसका रहस्य यह है कि भिक्षु अहिंसा की दृष्टि से न तो स्वयं भोजन पकाता है या पकवाता है। न ही अपरिग्रह की दृष्टि से भोजन का संग्रह 1. सूत्रकृत. 16.636
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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