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________________ (217) उपदेश देते तथा रीति रिवाजों से उनको अवगत कराते। वे शिष्य को पात्र, चीवर एवं आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था कराते हैं। शिष्य उपाध्याय की सेवा-सुश्रुषा करता। उनका विनय करता एवं आज्ञांकित रहकर उनके प्रत्येक कार्य को करने में सहायक होता। उनके आवास, भोजन, स्नान, आवागमन आदि में सहयोग देता, साधन जुटाता तथा स्वच्छता रखता। यदि उपाध्याय रोग से आक्रांत हो जाते, तो शिष्य पूर्वरूपेण सेवा में तत्पर हो जाता। यदि आजीवन सेवा करनी पड़ती, तो भी वह सेवा करके कर्तव्य निभाता। और यदि शिष्य रोगाक्रांत हो जाता तो उपाध्याय भी शिष्य की भांति स्वयं शिष्य की सेवा चाकरी करके उसके आरोग्य के साधन जुटाते। यदि शिष्य के मन में उदासी हो, शंका हो या भ्रमणा हो जाये तो उपाध्याय उसे निवारण करके समाधान करते। इसी प्रकार यदि उपाध्याय के मन में उदासी, शंका, या भ्रमणा हो जाती तो शिष्य उसका निवारण करने में तत्पर रहता। अपराध किये जाने पर उपाध्याय का यह कर्त्तव्य होता, कि वे संघ के समक्ष उसके अपराध की क्षमा दिलाते अथवा उसे अल्पदण्ड मिले, ऐसा प्रयास करते। इसी प्रकार यदि उपाध्याय से अपराध हो जाता हो शिष्य भी इसी भांति प्रयत्नशील होता था। __इस प्रकार उपाध्याय के शिष्य के प्रति तथा शिष्यों को उपाध्याय के प्रति कर्तव्य एवं धर्म थे। जिस प्रकार आचार्य पद का निरूपण है, उसी के समान उपाध्याय पद का भी उल्लेख किया गया है। उसमें तनिक भी अन्तर नहीं है। जैन दर्शन में उपाध्याय का कर्त्तव्य पठन-पाठन एवं विनयगुण का विकास है वहाँ बौद्ध दर्शन में शिष्य की सम्पूर्णतया जिम्मेदारी उपाध्याय पर है। वहाँ आचार्य की अनुपस्थिति में उपाध्याय को संघ नेतृत्व भी संभालना पड़ता है जबकि यहाँ उपाध्याय की अनुपस्थिति में आचार्य का चयन होता है। इस प्रकार बौद्ध परम्परा में उपाध्याय पद का वर्णन उपलब्ध होता है। 1. वही 2. वही.
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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