SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 180
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (177) वे संघ में प्रवचन देते हैं / शास्त्रों का ज्ञाता होकर जो जीव जिस रुचि से प्रवृत्त हो सकता है, उसको रूचि के अनुसार बोध देकर सन्मार्ग में प्रवृत्त करने हेतु पुरुषार्थ करते हैं। आचार विभिन्न दृष्टिकोण में भारतीय आचार आचार शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त होता है, यथा-नीति, धर्म, कर्तव्य, नैतिकता आदि। जिस प्रकार धर्म शब्द व्यापक है, उसी प्रकार आचार की व्यापकता उससे अधिक प्रसरी हुई है। इस प्रकार मानव के कर्त्तव्य के रूप में जिन नियमों का होना आवश्यक है, उनका समावेश आचार के अन्तर्गत हो जाता है। भारतीय आचार में जैन परम्परा यह मान्य करती है कि उनके आचार के नियमों का निर्माण प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव से प्रारम्भ होकर, कुछ परिवर्तनों के साथ अथवा युग के अनुसार उस समय के अन्य तीर्थङ्करों ने किया। अन्तिम स्वरूप में विद्यमान आचार संहिता का विधान अन्तिम तीर्थङ्कर महावीर की देन है। तथागत बुद्ध ने बौद्ध परम्परा के अनुसार नियमों की सरंचना की, तो वैदिक परम्परा में वेद, ब्राह्मण, उपनिषद्, स्मृति आदि ग्रन्थों के आलंबन से नियमों का निर्माण हुआ। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम एवं कर्मयोगी श्री कृष्ण ने भी अपने युग के चलते प्रवाह के अनुसार नीति प्रणाली का गठन किया। वास्तव में भारतीय आचार को सुदृढ़ करने वाले ये ही महापुरुष हैं। श्रुति, स्मृति, कल्प आदि ग्रन्थों, साथ ही पिटक, आगमों के आधार पर उनमें, पल्लवन, विस्तार, संकोच और विकास होता रहा। पाश्चात्य आचार ___ पाश्चात्य आचार की नींव डालने में ईसा, मूसा और मुहम्मद आदि प्रमुख हैं। क्योंकि बाईबल और कुरान आदि ग्रन्थों में दार्शनिक तत्त्वों का प्रतिपादन न होकर मानव जीवन को समुन्नत बनाने हेतु जिन नियमों की आवश्यकता थी, उन्हीं का प्रतिपादन इनमें किया गया है। यहाँ भी जीवन विकास के लिए आचार को आवश्यक स्वीकार किया गया। इस प्रकार भारतीय और पाश्चात्य धर्मों में आचार को महत्त्वपूर्ण मान्य किया गया है। भारत के तीनों धर्मों-वैदिक, जैन और बौद्ध ने अपनी परम्परा के अनुसार एवं पाश्चात्य धर्मों में अपनी मान्यताओं के अनुसार आचार प्रणालिका का गठन किया।
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy