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________________ (151) इस अविद्या का नाश कैवल्य की प्राप्ति से होता है। एवं कैवल्य की प्राप्ति का एकमात्र उपाय है विवेक ख्याति। जब साधक का चित्त रज एवं तमोगुण रूप मल से रहित हो जाता है अर्थात् एकमात्र सत्त्वगुण का उद्रेक ही उसके चित्त में रहता है, तब वह चित्तका वैशारध हो जाता है। उस वैशारधचित्त में पूर्ण निर्मलता आ जाती है। इस पूर्ण निर्मलचित्त में विवेकख्याति रूप विशिष्ट ज्ञान का उदय होता है। इस समय परम तत्त्व का साक्षात्कार हो जाता है। चित्त की निवृत्ति मोक्ष का उपाय है। इस प्रकार क्रमशः जब समस्त वृत्तियों के निरोध हो जाने के उपरान्त असम्प्रज्ञात समाधि में निरोध संस्कार भी क्षीण हो जाते हैं, तब चित्त, वृत्तियों सहित अपने कारण प्रकृति में लीन हो जाता है और पुरुष अपने स्वरूप में अवस्थित हो जाता है, यही मोक्ष कहा जाता है।' योगवार्तिककार तीन प्रकार की मुक्ति का निर्देश करते हैं। पहली मुक्ति ज्ञान से होती है, यह मुक्ति मिथ्यादर्शन से मुक्ति है। दूसरी मुक्ति राग द्वेष के क्षय से होती है यह क्लेशों से मुक्ति है तथा तीसरी मुक्ति कर्मक्षय से होती है यह कर्म से मुक्ति है। यह तीनों ही मुक्ति तत्त्वतः विवेकी को होती है। कैवल्य किसका? योग दर्शन में स्पष्ट रूप से दो प्रकार के कैवल्य की कल्पना की है। वाचस्पति मिश्र इनमें से प्रथम को प्रधान का मोक्ष एवं द्वितीय को पुरुष का मोक्ष मानते है। सांख्य की भांति योग में भी दो प्रकार की मुक्ति स्वीकार की है-1. जीवन्मुक्ति 2. विदेहमुक्ति। प्रारब्ध कर्मों की स्थिति के समय तक जीवन्मुक्ति पश्चात् विदेहमुक्ति होती है। 1. योग सूत्र 2.26 2. त. वै. पृ. 125 3. यो. वा. पृ. 127 4. वही पृ. 18 5. योगवार्तिक पृ. 441-549 (4.25-32) 6. योगसूत्र 3.34 7. त. वै. पृ. 464 8. यो. सा. सं. पृ. 17, व्यास भाष्य पृ. 455
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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