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________________ (118) वस्तु के अनन्तधर्मात्मक होने से सिद्ध परमेष्ठी के भी अनन्त गुण हो जाते हैं / प्रस्तुत में सिद्ध के प्रसिद्ध आठ गुण एवं इकत्तीस गुणों के साथ कुछ अतिरिक्त गुणों का भी उल्लेख किया है। वास्तव में ये सर्व गुण अष्ट कर्म के क्षय की अपेक्षा से ही निष्पन्न होते हैं, जैसा कि हमने पाया है। गुणों का प्रादुर्भाव कर्मों के अपगम पर निर्धारित है। 2. सिद्धिगति-स्वरूप स्थिति जब आत्मा शुद्धावस्था को प्राप्त करती है, जो कि सर्व कर्म-मलों से मुक्त होने के पश्चात् की स्थिति है। उस मुक्तावस्था के पश्चात् उसका अवस्थान कहाँ होता है? वेदान्ती आत्मा को व्यापक मानते हैं। तथा शुद्धात्मा ब्रह्म में विलीन हो जाती है, स्वीकार किया है। बौद्ध दर्शन का निर्वाण ‘नाश' को सूचित करता है। जैन परम्परा ही सिद्धि गति का स्वरूप निर्धारित करती है। जब आत्मा सर्व कर्मों का क्षय कर देती हैं, तब उर्ध्वगमन स्वभाव के फलस्वरूप उर्ध्वगमन करती हुई सिद्धलोक में जाकर अवस्थित होती है। यह सिद्धभूमि ईषत्प्रागभार पृथ्वी के ऊपर स्थित है। एक योजन में कुछ कम है। ऐसे निष्कम्प व स्थिर स्थान में सिद्ध स्थित होते हैं। __ यह सिद्धिगति सर्वार्थसिद्ध इन्द्र के ध्वजदण्ड से 12 योजनमात्र ऊपर जाकर आठवीं पृथ्वी पर स्थित हैं। उसके उपरिम और अधस्तन तल में से प्रत्येक तल का विस्तार पूर्व पश्चिम में रूप से रहित (अर्थात् वातवलयों की मोटाई से रहित) एक राजू प्रमाण है। वेत्रासन के सदृश वह पृथिवी उत्तर दक्षिण भाग में कुछ कम सात राजू लम्बी है। इसकी मोटाई आठ योजन है। यह पृथिवी घनोदधिवात, घनवात और तनुवात इन तीन वायुओं से युक्त है। इनमें से प्रत्येक वायु का बाहल्य 20,000 योजन प्रमाण है। उसके बहुमध्य भाग में चाँदी एवं सुवर्ण के सदृश और नाना रत्नों से परिपूर्ण ईषत्प्रागभार नामक क्षेत्र है। यह क्षेत्र उत्तान धवल छत्र के सदृश या ऊँधे कटोरे के सदृश आकार से सुन्दर और 45,00,000 लाख योजन (मनुष्यक्षेत्र) प्रमाण विस्तार से संयुक्त है। उसका मध्य बाहुल्य (मोटाई) आठ योजन है उसके आगे घटते-घटते अंत में एक अंगुलमात्र। अष्टमभूमि में स्थितसिद्धक्षेत्र की परिधि मनुष्य क्षेत्र की परिधि के समान है। . 1. आव. 157-326 2. भगवती आ. 2133 3. तिलोयपण्णती 7.652-658 4. वही
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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