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________________ (116) की दृष्टि से यहां कहा गया है। उनमें भेद का प्रतिपादन पूर्वजन्म के विविध संबंध सूत्रों के आधार पर किया गया है। इन पन्द्रह भेदों के छः वर्ग बनते हैं (1) प्रथम वर्ग से यह ध्वनित होता है कि आत्मिक निर्मलता प्राप्त हो तो संघबद्धता और संघमुक्तता इन दोनों अवस्थाओं में मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। (2) दूसरे वर्ग की ध्वनि यह है कि आत्मिक निर्मलता प्राप्त होने पर हर व्यक्ति सिद्धि प्राप्त कर सकता है, फिर वह संघ क नेता हो या उसका अनुयायी। (3) तीसरे वर्ग का आशय यह है कि बोधि की प्राप्ति होने पर सिद्धि प्राप्त की जा सकती है, फिर वह (बोधि) किसी भी प्रकार से हुई हो। __ (4) चौथे वर्ग का हार्द यह है कि स्त्री और पुरुष दोनों शरीरों से सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। (5) पाँचवें वर्ग से यह ध्वनित होता है कि आत्मिक निर्मलता और वेशभूषा का घनिष्ठ संबंध नहीं है। साधना की प्रखरता प्राप्त होने पर किसी भी वेश में सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। (6) छठा वर्ग सिद्ध होने वाले जीवों की संख्या और समय से संबंधित है। विशेषावश्यक भाष्य में सिद्ध के व्यावहारिक चौदह भेदों का कथन किया है जिसका उल्लेख हम पूर्व में कर चुके हैं। सिद्ध परमेष्ठी के गुण समवाय के 31 वें आलापक में सिद्ध के इकतीस गुणं का निर्देश है। यह निर्देश दो प्रकार से प्राप्त होता है। समवायांग में निर्दिष्ट ये इकतीस गुण आठ कर्मों के क्षय के आधार पर संग्रहित है 1. ज्ञानावरण कर्म के क्षय से निष्पन्न-५ (1-5) 2. दर्शनावरण कर्म के क्षय से निष्पक्ष-९ (6-14) 3. वेदनीय कर्म के क्षय से निष्पन्न-२ (15-16) 4. मोहनीय कर्म के क्षय से निष्पन्न-२ (17-18) 5. आयुष्य कर्म के क्षय से निष्पन्न-४ (19-22) 6. गोत्र कर्म के क्षय से निष्पन्न-२ (23-24) 7. नाम कर्म के क्षय से निष्पन्न-२ (25-26) 8. अन्तराय कर्म के क्षय से निष्पन्न-५ (27-31) इस प्रकार अष्ट कर्मों के क्षय से निष्पन्न ये 31 गुण हैं।
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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