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________________ (113) मुक्त __जिनके द्रव्य और भाव दोनों कर्म नष्ट हो गये हैं, वे मुक्त हैं। वे पाँच प्रकार के संसार से निवृत्त हैं। परम प्रभुत्व को प्राप्त हैं। शुद्धचेतनात्म या केवलज्ञानसे मुक्त हैं। पारगत __संसार के अथवा सर्व प्रयोजन समूह के पार होने से पारगत है अर्थात् संसार के पार पहुँचे है। संसार से तात्पर्य लोक है। चौदह राज लोक के अग्र स्थान पर जहाँ पर लोक का अन्त हो जाता है वहाँ सिद्ध परमेष्ठी प्रतिष्ठित हो गये हैं। अनादिकाल से भव भ्रमण करते हुए इस भव सागर को, भवाटवी को पार कर लिया है। परम्परागत ___ अनुक्रम से संसार के पार पहुँचा हुआ, परम्परागत कहलाता है। कर्ममुक्तता जीव की एक साथ नहीं होती। अपितु अनुक्रम से सर्वकर्मों का क्षय करके, गुणश्रेणी आदि प्रक्रिया के अनन्तर सिद्धत्व प्राप्त होता है। चतुर्दश गुणस्थान पर आरूढ होकर अथवा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का क्रमपूर्वक आसेवन करके मुक्ति स्थान को प्राप्त करने से परम्परागत है। परिनिवृत्त सांसारिक प्रवृत्तियों से जो सम्पूर्ण रूप से निवृत्त हो गये हैं तथा निर्वाण को प्राप्त हो गये हैं, ऐसे सिद्ध परिनिवृत्त कहलाते हैं।' अन्तकृत जिसका कार्य समाप्त हो गया है, वह अंतकृत् है। तात्पर्य यह है कि अंतिम कार्य सिद्धत्व को प्राप्त करने का, वह कर लिया हो उसे अन्तकृत कहते हैं। 1. भगवती 2.1.16, रा. वा. 2.10.2.124.23 2. सवार्थसिद्ध 2.10.169.7 3. नयचक्र वृ. 107 4. पंचास्तिकाय ता. वृ. 109, 174, 13 (4) पं. का. मू. 28 5. भगवती 2.1.16 6. वही 7. वही 8. भगवती 2.1.16
SR No.023544
Book TitlePanch Parmeshthi Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year2008
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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