________________ 17 अरहन्त परमेष्ठी और रामचन्द्र,। नौ वासुदेव -- त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयंभू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुण्डरीक, दत्तदेव, नारायण (लक्ष्मण) और कृष्ण, 2 नौ प्रतिवासुदेव -- अश्वग्रीव, तारक, मेरक, मधु, निशुम्भ, बलि, प्रलाद, रावण एवं जरासन्ध / ये सब मिलाकर इस प्रकार 63 महापुरुष माने गए हैं जिनमें तीर्थंकर प्रमुख हैं / अर्हत् शब्द का प्रयोग जैन एवं जैनेत्तर सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय में उपलब्ध होता है / (2) वैदिक वाङ्मय में अर्हत् : वैदिक वाङ्मय में अर्हत् अथवा अरहन्त शब्द अनेक स्थानों पर उपलब्ध होता है / यहां यह शब्द पूज्य योग्य, स्तुत्य, एवं सज्जन इत्यादि अर्थो में प्रयुक्त किया गया है / ऋग्वेद में अर्हत् शब्द ही नहीं बल्कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभ के भी अनेक उल्लेख आते हैं / एक स्थान पर अरिष्टनेमि से स्वस्ति वाचन पर मंगल की कामना की गई है / वराहमिहिरसंहिता योगवासिष्ठ, वायुपुराण, 11 तथा ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्य 12 में भी आर्हत् मत का उल्लेख मिलता है / भागवतपुराण में भी आर्हत् मत का उल्लेख करते हुए प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को जिन (श्रमणों 1. अयलो विजओ भद्दो, सुष्मभ सुदंसणो य नायव्यो / आणन्दो नन्दणो पउमो नवमो रामो य बलदेवो / / वही, 5. 154 2. होही तिविठु दुविठु स्वयंभु पुरिसोत्तमो पुरिससीहो / पुरिसवर पुण्डरीओ दत्तो नारायणो कण्हो || वही, 5. 155 3. पढमो आसग्गीवो, तारग मेरग निसुम्भ महुकेढो। बलि पल्हाओ रावण तह य जरा सिन्धु पडिसत्तू / / वही, 5.156 4. अर्हन्तश्चिद् यमिन्धते संजनयन्ति जन्तवः / / ऋग्०५.७.२ 5. अर्हन्तो ये सुदानवो नरो असामिशवसः / वही, 5. 52.5 6. इमं स्तोममर्हते जातवेदसे रथमिव सं महेमा मनीषया / वही, 1.64.1 7. अर्हन्नग्ने पैजवनस्य दानं होतेवसद्म पर्येमि रेभन् / वही, 7. 18. 22 8. स्वस्ति नस्तायो अरिष्टनेमिः / वही, 1.86.6 6. दिग्वासास्तरुणो रूपवांश्च कार्योऽर्हतां देवः / वराहमिहिरसंहिता, 45, 58; उद्धृत अनेकांत, वर्ष 28, कि० 1, पृ० 18 10. वेदान्तार्हतसांख्यसौगतगुरुव्यक्षादिसूक्तादृशो / (वाल्मीकि) योगवासिष्ठ, 6.173.34 11. ब्राह्मे शैवं वैष्णवं च सौरं शाक्तं तथार्हतम् / वायु० 42. 16 12. शरीरपरिमाणो हि जीव इत्यार्हता मन्यन्ते / ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्य, 2. 2. 34, पृ० 514