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________________ साधु परमेष्ठी 229 जिसमें खाने का भागथोड़ा हो और फैंकना अधिक पड़े ऐसा पदार्थ भी न लेवे / ' पानी को चख कर ही ले, अधिक खट्टा पानी नहीं लेना चाहिए। आगम-रचना काल में साधुओं को यवोदक, तुषोदक, सौवीर एवं आरनाल आदि अम्ल जल ही अधिक मात्रा में प्राप्त होते थे | अधिक देर तक रखने पर वे जल और अधिक अम्ल (खट्टा) हो जाते थे। दुर्गन्ध भी पैदा हो जाती थी और वैसे जलों से प्यास भी नहीं बुझती थी। इसलिए उन्हें चख कर लेने का विधान है। आहार कैसे करना चाहिए? सामान्य विधि के अनुसार मुनि गोचरी से वापिस आकर उपाश्रय में ही भोजन करे किन्तु जो मुनि भिक्षार्थ दूसरे गांव में गया हो और यदि वह बालक, बूढ़ा, बुभुक्षित, तपस्वी या प्यास से पीड़ित हो तब उपाश्रय में आने से पहले ही किसी पगासुक कोष्ठक या भित्तिमूल को देखकर जोकि ऊपर से छाया हुआ एवं संवृत हो, उसके स्वामी की आज्ञा लेकर, प्रमार्जनी से शरीर का प्रमार्जन कर, वही भोजन कर सकता है। वहां भोजन करते हुए मुनि के आहार में गुठली, कांटा, तिनका या कंकड़ इत्यादि कोई दूसरी वस्तु निकले तो उसे उठाकर न फैंके, मुंह से न थूके, बल्कि हाथ में लेकर एकान्त में चला जाए। वहां उचित भूमि देखकर, यतनापूर्वक उसे परिस्थापित करे औरतत्पश्चात् स्थान में आकर उसे प्रतिक्रमण करना विहित है। . उपाश्रय में भोजन करने की विधि में जब मुनि भिक्षा लेकर उपाश्रय में आता है तो आकर वह सर्वप्रथम स्थान का प्रतिलेखन करें तदनन्तर निसीहि' का उच्चारण करते हुए एवं अज्जलिपूर्वक नमस्कार करते हुए उपाश्रय में प्रवेश करके गुरु के समीप आकर 'ईर्यापथिकी' सूत्र पढे और फिर प्रतिक्रमण करे। आलोचना करने से पूर्व आचार्य कीआज्ञालें।आज्ञा प्राप्त करआने-जाने में, भक्त-पान लेने में लगे सभी अतिचारो को याद करके, जो कुछ जैसे बीता हो, वह सब आचार्य को बतलावे और अनन्तर सरल भाव से उसकी आलोचना करे। 1. वही, 5.1.73-74 2. वही, 5.1.78 3. दे०-वही, टिप्पण, 5.1.165 4. दश०५.१.८२-८३ 5. वही, 5.1.84-86
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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