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________________ साधु परमेष्ठी 7. प्रमार्जिका: यह पांव साफ करने के लिए एक वस्त्र का टुकड़ा होता है। 8-10. तीन पात्रों के तीन अंचल : एक साधु अधिक से अधिक तीन ही पात्र रख सकता है। उन पात्रों के लिए तीन वस्त्रांचल रखे जाते हैं। 11. भिक्षाधानी: यह एक प्रकार का वस्त्र से बनाया हुआथैला होता है जिसमें भिक्षा लेने के लिए पात्र रखे जाते हैं। 12. माण्डलक वस्त्र: जिस वस्त्र पर साधु-मण्डली भोजन करती है वह माण्डलक वस्त्र कहलाता है। 13. रजोहरण दण्डावरक वस्त्र : यहरजोहरण की डंडी के ऊपर लपेटा जाने वाला वस्त्र होता है जिसके ऊपर एक डोरी भी बंधी होती है। इसे 'निषद्या' भी कहा जाता है। 14. ताण्डुलादिक जल को छानने का वस्त्र : साधु के लिए साधारण एवं नीरस भोजन का विधान है जिसमें कांजीका पानी तथा जौ का पानी भी शामिल है। इस प्रकार के पानी को वस्त्र से छानकर पीते हैं। (अ) विशेष उपकरण: साधुओं के पास कुछ ऐसे उपकरण भी होते हैं जो किसी विशेष अवसर पर ग्रहण किए जाते हैं तथा उपयोग किए जाने पर गृहस्थ को वापिस लौटा दिए जाते हैं, वे विशेष उपकरण कहलाते हैं / ये उपकरण हैं1.पीठ: यह बैठने के लिए एक लकड़ी की बनी हुई चौकी होती है। 2. फलक : यह एक लकड़ी का पाटा होता है जो सोने के लिए प्रयोग किया जाता 3. संस्तारक : यह घास, तृण इत्यादि से बनाया गया आसन (बिस्तर) होता है। 1. सीयं च सोवीर-जवोदगं च / उ० 15.13
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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