________________ साधु परमेष्ठी 215 रहने की व्यवस्थता थी और जो निर्ग्रन्थ वैसा करने में समर्थ नहीं थे, उनके लिए सीमित अर्थ में अचेल (अल्पमूल्य और श्वेतवस्त्रधारी) रहने की व्यवस्था थी।भगवान् पार्श्व के शिष्य भगवान् महावीर के तीर्थ में इसीलिएखप सके कि उनके तीर्थ में सचेल और अचेल, इन दोनों ही व्यवस्थाओं की मान्यता थी। इससचेल और अचेल के प्रश्नपरही निर्ग्रन्थ-संघश्वेताम्बर और दिगम्बर-इन दो बृहत् शाखाओं में विभक्त हो गया / विष्णुपुराण में भी जैन साधुओं के इन दोनों रूपों-निर्वस्त्र और सवस्त्र का उल्लेख मिलता है। साधु के उपकरणों को मुख्यतःदोभागों में बांटा जा सकता है-सामान्य उपकरण और विशेष उपकरण। (अ) सामान्य उपकरण : जो वस्त्र तथा पात्र आदि सदैव साधु के उपयोग में आते रहते हैं वे सामान्य उपकरण कहलाते हैं / एक साधु के लिए इस प्रकार के चौदह उपकरण रखने का विधान है। वे चौदह उपकरण हैं1. रजोहण : जीवों की रक्षा करने तथा धूलि आदि साफ करने के लिए एक प्रकार की मार्जनी होती है। इसे श्वेताम्बरी एवं दिगम्बरी दोनों ही प्रकार के साधु रखते हैं। 2. पात्र (प्रतिग्रह) आहार तथा जल इत्यादि लाने एवं रखने के लिए पात्रों का उपयोग किया जाता है। आचारांगसूत्र में साधु के लिए एषणीय पात्रों की याचना करने के विधान का उल्लेख है। 3. वस्त्र: साधु साधारण कोटि के वस्त्र पहनते हैं जिनके प्रति उनका ममत्व नहीं होता। आचारांगसूत्र में निर्वस्त्र', एक वस्त्रधारी५ द्विवस्त्रधारी एवं 1. दिग्वाससामयं धर्मो,धर्मोऽयं बहुवाससाम् / विष्णु पुराण 3.18.10 2. अत्र 'रथहरणं पडिग्गहं च इत्युपलक्षणमन्येषामपि साधूपकरणानां तथा हि-३ शटकत्रयम्,४. चौलपटकः,५.आसनं.६.सदोरकमुखवस्त्रिका,७. प्रमार्जिका, १०पात्राणामञ्चलत्रयम्, 11. भिक्षाधानी, 12. मण्डलकवस्त्रम्, 13 दोरकसहितं रजोहरणदण्डावरकवस्त्रं निषद्या' इति प्रसिद्धं, १४.धावनजलादिगालनवस्त्रम इत्यादि। ज्ञाता०गान्टी०, 1.32, पृ०३८०-८१ 3. दे०-आयारो, 2.5. 112 4. दे० वही, 8.7. 112 5. वही, 8.6.85 6. वही, 8.5.62