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________________ 210 जैन दर्शन में पञ्च परमेष्ठी अतः जैनधर्म में मुनियों का चारित्रही वस्तुतःचारित्र है। असमर्थ श्रावक भी इसी उद्देश्य से श्रावक धर्म का पालन करता है कि में आगे चलकर साधु धर्म स्वीकार करूंगा। साधु के आचार को समुचित रूप से जानने के लिए इसे दो भागों में बांटा जा सकता है-(1) सामान्य साध्वाचार और (2) विशेष साध्वाचार। (1) सामान्य साध्वाचार : साधु के द्वारा प्रतिदिन सामान्य रूप से जिस प्रकार के सदाचार का पालन किया जाता है, वह सामान्य साध्वाचार कहा जाता है। इसमें निम्नोक्त बातें शामिल हैं-- महाव्रत प्रवचनमाताएं षडावश्यक सामाचारी बाह्य उपकरण (उपधि) वसति या उपाश्रय आहार-खान पान इनमें से महाव्रत, प्रवचनमाताएं एवं षडावश्यक का वर्णन पहले ही किया जा चुका है। (क) सामाचारी: सामाचारी का अर्थ है-साधु का आचार-व्यवहार या इति कर्त्तव्यता। इस व्यापक परिभाषा से साधु-जीवन की दिन-रात की समस्व प्रवृत्तियां सामाचारी शब्द से व्यवहृत हो जाती हैं | सामाचारी के दसमुख्य अंग बतलाए गए हैं जो निम्न प्रकार हैं---१ 1. आवश्यकी: अपने ठहरने के स्थान से बाहर निकलते समय 'आवस्सियं' अर्थात् आवश्यक कार्य के लिए बाहर जा रहा हूं। ऐसा कहना आवश्यकी है / यह इस बात का सूचक है कि साधु का गमनागमन प्रयोजनशून्य नहीं होता। 1. विस्तार के लिए दे० उ० 26.2-7
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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