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________________ 144 जैन दर्शन में पञ्च परमेष्ठी (3) श्रुत की सम्यक् वाचना न होना : आचार्य तथा उपध्याय का यह कर्त्तव्य है कि वे जिन श्रुतपर्यायों को धारण करते हैं,समय-समय पर उनकी गण को सम्यक् वाचना देते रहें परन्तु यदि वे प्रमाद आदि कारणों से सूत्रार्थ की सम्यग् वाचना न कर सकें तब वह गण का त्याग कर देते हैं। (4) अपने अथवा दूसरे गण की साध्वियों में आसक्ति : आचार्य तथा उपाध्याय अपने गण की या दूसरे गण की साध्वियों में आसक्त हो जाएं तो गण से बाहर निकल जाते हैं परन्तु देखा जाता है कि साधारणतया ऐसी स्थिति नहीं आती है किन्तु कभी-कभी दृढ़ता से बंधे हुए कर्मों के उद्य से ऐसा हो जाता है, उस स्थिति में आचार्य गण को छोड़कर चले जाते हैं। (5) मित्र या स्वजनों का गण से निकल जाना : आचार्य तथा उपाध्याय के मित्र अथवा स्वजन गण से निकल जाएं तो उन्हें पुनः गण में सम्मिलित करने के लिए तथा उनका सहयोग प्राप्त करने के लिए वे अपने गण से अपक्रमण कर देते हैं | जब उनका अभीष्ट प्रयोजन सिद्ध हो जाए, तब वे पुनः गण में सम्मिलित हो जाते हैं। (ठ) आचार्य-भक्ति : शुद्ध भाव से आचार्य में अनुराग करना ही आचार्य भक्ति है। अनुराग से प्रेरित होकर ही भक्त, कभी आचार्यां को नए-नए उपकरणों का दान देता है, कभी विनयपूर्वक उनके सामने जाता है, कभी उनके प्रति आदर प्रकट करता है और कभी शुद्ध मन से उनके पैरों का पूजन करता है। आचार्य में अनुराग से तात्पर्य है--आचार्य के गुणों में अनुराग आचार्य कुन्दकुन्द ने उन्हीं आचार्यों को प्रणाम किया है जो उत्तम क्षमा, प्रसन्नभाव, वीतरागता और तेजस्विता से युक्त हैं तथा जो गगन की भाँति निर्लिप्त और सागर की भाँति गम्भीर हैं।' 1. अर्हदाचार्येषु बहुश्रुतेषु प्रवचने च भावविशुद्धियुक्तोऽनुरागो भक्तिः। सर्वार्थसिद्धि, 6.24 भाष्य 2. आचार्याणामपूर्वोपकरणदानं सन्मुखगमनं, सम्भ्रमविधानं पादपूजनं दानसम्मानादि विधानं मनःशुद्धियुक्तोऽनुरागश्चाचार्यभक्तिरुच्यते / / त०१० 6.24. पृ० 228-226 3. उत्तमखमाए पुढवी पसण्णभावेण अच्छजलसरिसा। कम्मिंघणदहणादो अगणी वाऊ असंगादो।। दशभक्ति, पृ 210 4. गयणमिव णिरुवलेवा अक्खोहा सायरुव्वमुणिवसहा / एरिस गुणणिलयाणं पायं पणमामि सुद्धमणो / / वही
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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