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________________ 120 जैन दर्शन में पञ्च परमेष्ठी (क) सत्यमनोगुप्ति :सद्भूत पदार्थों में प्रवृत्तमान मन को रोकना सत्यमनोगुप्ति है / (ख) मृषामनोगुप्ति : मिथ्या अर्थात् असत्य वझूठे पदार्थों में प्रवृत्तमान मन को रोकना मृषा-मनोगुप्ति है | (ग) सत्यमृषामनोगुप्ति :सत्य एवं असत्य से मिश्रित मन के व्यापार को रोकना असत्य-मृषा-मनोगुप्ति है। (घ) असत्यमृषामनोगुप्ति :सत्य, असत्य एवं सत्यासत्य से रहित मन के व्यापार को रोकना ही असत्यमृषामनोगुप्ति है / मनोगुप्ति से जीव एकाग्रता को प्राप्त होता है / एकाग्रचित्तजीव अशुभ संयम का आराधक होता है / 2- वचनगुप्ति : संरम्भ, समारम्भ एवं आरम्भ में प्रवृत्त हुए वचन के व्यापार को रोकना वचनगुप्ति है ।वचन के भी सत्य आदि चार प्रकार होने से मनोगुप्ति की तरह इसकेभी क्रमशः चार भेद माने गए हैं / वे हैं- (१)सत्यवाग्गुप्ति, (२)मृषावाग्गुप्ति, (3) सत्यमृषावाग्गुप्ति और (4) असत्यमृषा-वाग्गुप्ति / / वचनगुप्ति से जीव निर्विकार भाव को प्राप्त होता है / निर्विकारी जीव सर्वथा वाग्गुप्ति तथा अध्यात्मयोग के साधनभूत ध्यान से युक्त होता है / 3- कायगुप्ति: खड़े होने में, बैठने में, लेटने में, गर्त आदि के लांघने में, सामान्यतः चलने-फिरने में तथा इन्द्रियों का विषय के साथ संयोग करने आदि में जो शरीर की संरम्भ, समारम्भ एवं आरम्भरूपप्रवृत्ति होती है, उसे रोकना कायगुप्ति है ।कायगुप्ति से जीव संवर 6 को प्राप्त होता है / संवर से कायगुप्त होकर 1. मणगुत्तयाएं णं जीवे एगग्ग जणयइ / एगग्गचित्ते णं जीवे मणुगुत्ते संजमाराहए भवइ / उ० 26.54 2. संरम्भ-समारम्भे आरम्भे य तहेव य / वयं पवत्तमाणं तु नियतेज्ज जयं जई / / वही, 24.23 3. सच्चा तहेव मोसा य सच्चामोसा तहेव य / चउत्थी असच्चमोसा वइगुत्ती चउविहा / / वही, 24.22 4. वयगुत्तयाए णं निव्वियारं जणयइ / निम्वियारे णं जीवे वइगुत्ते अज्झप्पजोगज्झाणगुत्ते यावि भवइ / वही, 26.55 ठाणे निसीयणे चेव तहेव य तुयट्टणे / उल्लंघण-पल्लंघणे इन्दियाण य जुंजणे / / सरंभ-समारम्भे आरम्भम्भितहव य / कायं प्रवत्तमाणं तु नियतेज्ज जयं जइ / / उ० 24. 24-25 6. आस्रवनिरोधः संवरः / / त० सू०६.१
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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