________________ पुरोवाक् ओंकारं बिन्दु संयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः / कामदं मोक्षदं चैव ओंकाराय नमोनमः // समस्त भारतीय सम्पदा एवं संस्कृति जिसमें अनुस्यूत है ऐसा महिमान्वित ओंकार पद परमतत्त्व का आधायक है। ऋषि, महर्षि, यति-मुनि एवं योगावचर सदैव तत्पर हो जिसका निरन्तर ध्यान करते हैं, उपासना करते हैं वह ऐसा ओम् अक्षर ही सत्त्वों का कल्याण करने वाला है / यह काम साधक एवं मोक्षप्रद तो है ही साथ ही अर्थ एवं धर्म की वृद्धि में मानव का प्रबल सहायक हैं / इसी कारण समस्त वाङ्मय इसी एक पद ओंकार का मंगलगुणगान करते है। समस्त तप भी इसी ओम् अक्षर में समाहित हैं। मुमुक्षु जन भी इसी के कारण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, यह ओम् अक्षर ही समस्त सिद्धियों का प्रदाता सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति तपांसि सर्वाणि च यद् वदन्ति। यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण ब्रवीम्योमित्येतत् // ब्रह्मस्वरूप यह ओम् ही सर्वोत्तम आलम्बन है जिसे सम्यक् ज्ञातकर मानव ब्रह्मलोक में भी सम्मान पाता है। सचमुच में जो कोई भी सत्त्व जिस किसी भी प्रकार की मनोकामना से ओंकार का एकाग्रमन से स्मरण करता है वही उसे मिल जाता है, जैसे उपनिषदों में बतलाया भी गया है - एतद्ध्येवाक्षरं ब्रह्म एतद्ध्येवाक्षरं परम्। एतद्ध्येवाक्षरं ब्रह्म ज्ञात्वा यो यदिच्छति तस्य तत् // प्रजापति-मुखोद्भूत ओम् निखिल मंत्रों का नायक है। इसमें दो 1. द्र० कठोपनिषद् 2/15 2. वही,२/१६ 3. द्र० योगसिद्धान्त चन्द्रिका, पृ० 26 : अकारं च उकारं च मकारं च प्रजापतिः