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________________ अरहन्त परमेष्ठी श्रीमण्डप क प्रथम खण्ड में महर्षिगण, द्वितीय खण्ड में देवियां, तृतीय खण्ड में गुणवती साध्वियां, तथा उसके पश्चात् क्रमश ज्योतिष्क देवों' की देवियां, व्यन्तरकन्याएं एवं वनवासी देवियां बैठती हैं / तत्पश्चात् ज्योतिष्क देद, व्यन्तर एवं भुवनेन्द्र देवों का स्थान आता हैं। इन्हीं की एक ओर राजाओं एवं अन्य मनुष्यों के बैठने का स्थान होता है। उसके बाद समवसरण के पूर्वोत्तर भाग में तिर्यञ्च बैठते हैं। श्रीमण्डप के मध्य भाग में वैदूर्यमणि की बनी हुई एक प्रथम पीठिका, उसके ऊपर सुवर्ण की बनी हुई एक दूसरी पीठिका होती है जिसके ऊपर आठ दिशाओं में लोकपालों के समानआठ बड़ी-बड़ीपताकाएं लहराती हुई सुशोभित होती हैं। दूसरे पीठ पर रत्नों से बना हुआ एक तीसरा पीठ होता है। इस प्रकार के तीन कटनीदार पीठ पर जिनेन्द्र भगवान् ऐसे शेभायमान होते हैं जैसे त्रिलोक के शिखर पर सिद्ध परमेष्ठी सुशोभित होते हैं / तीसरे पीठ के अग्रभाग पर सुगन्धित एक गंधकुटी होती है जिसके मध्य में एक रत्नजटित सिंहासन होता है। उस सिंहासन पर प्रभु सुशोभित होते हैं। तीर्थंकर देवस्वभाव से ही पूर्वअथवा उत्तर दिशा कीओर मुख करके विराजमान होते हैं ! तीर्थकरों का यह समवसरण एक अलौकिक सभा विशेष है / यहअशोक वृक्ष आदि अष्ट महाप्रातिहायों से सम्पन्न होता है। इसमें सम्मिलित सभी प्राणी भगवान् की वाणी सुनकर मुग्ध हो जाते हैं एवं सभी प्रकार के दुःखों से मुक्त हो जाते हैं। (ञ) तीर्थकर का उपदेश : आगम बतलाता है कि अतीत काल में अनेक तीर्थंकर हुए हैं। वर्तमान 1. देवों के चार प्रकार हैं-१. भवनपति, 2. व्यन्तर, 3. ज्योतिष्क और ४.वैमानिक / त०सू०४.१ 2. पउम० 2.55-61 3. आदि० 22.65 4. तृतीयमभवत् पीठं सर्वरत्नमयं पृथु / वही, 22.268 5. ईदृक् त्रिमेखलं पीठमस्योपरि जिनाधिपः / त्रिलोकशिखरे सिद्धपरमेष्ठीव निर्बभौ।। आदि० 22.304 6. वही, 23.20 7. वही, 23.26 8. देवोऽर्हन् प्राङ्मुखो वा नियतिमनुसरन्नुत्तराशामुखो वा / / वही, 23.163 6 अतीतकाल के चौबीस तीर्थर- निर्वाणसागरमहासाधुविमलप्रभ सुद्तअमलप्रा. उद्धर अगिङ्सन्मति सिन्धु कुसुमाञ्जलि शिवगण उत्साह ज्ञानेश्वर परमेश्वर विमलेश्वर यशोदरकृष्णमतिज्ञानमतिशुद्धमतिश्रीभ्रद्रअतिक्रान्तशान्ताश्चेति भूतकालसम्बधिचतु:विंशति तीर्थरेभ्यो नमो नमः / तीर्थ£र पृ० 314
SR No.023543
Book TitleJain Darshan Me Panch Parmeshthi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagmahendra Sinh Rana
PublisherNirmal Publications
Publication Year1995
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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