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________________ ( 74) मन्दिर ' चौमुखवसही' के नाम से प्रसिद्ध है / यह मन्दिर, एक तो पर्वत के ऊंचे भाग पर होने से और दूसरा स्वयं बहुत ऊंचा होने से आकाश के स्वच्छ होने पर 25-30 कोश की दूरी पर से दर्शकों को दिखलाई देता है / इस टोंक को अहमदाबाद के सेठ सोमजी सवाईने संवत् 1675 में बनवाया है। .., मीराते-अहमदी से लिखा है कि " इस मन्दिर (टोंक) के बनवाने में 58 लाख रुपये लगे थे।" लोग कहते हैं कि “केवल 84000 हजार की तो रस्सियाँ ही इसके काम में आई थीं।" विक्रमसंवत् 1979 की गणनानुसार नौ टोंकों में 127 बड़े मन्दिर, 677 देवरियाँ और उनमें 8590 भव्य जिनप्रतिमाएँ, तथा 8606 चरण-पादुकाएँ हैं। प्रति महिना में यहाँ दश हजार यात्री आते जाते हैं और कार्तिकी और चैत्री पूनम के दो बड़े मेले होते हैं जिनमें 25-35 हजार यात्री एकत्रीत हो जाया करते हैं। जैनशास्त्रकारोंने लिखा है किमयूर-सर्प-सिंहाद्या, हिंस्रा अप्यत्र पर्वते / सिद्धाः सिध्यन्ति सेत्स्यन्ति प्राणिनो जिनदर्शनात् // 1 // बान्येऽपि यौवने वाघे, तिर्यग्जातौ च यत्कृतम् / तत्पापं विलयं याति, सिद्धाद्रेः स्पर्शनादपि // 2 // -मयूर, सर्प, सिंह, आदि क्रूर और हिंसक प्राणि भी, जो इस पर्वत पर रहते हैं, जिनदेव के दर्शन से सिद्ध हुए,
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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