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________________ (71) इस में आदिनाथ भगवान् की, पांचसौ धनुष जितने विशाल शरीरमान का अनुकरण करनेवाली, मूर्ति है / , यह पर्वत ही में से उकेरी गई है। यह प्रतिमा 18 फुट ऊंची है। एक घुटने से दूसरे घुटने तक 14 // फुट चौड़ी है / सं० 1686 में धरमदास सेठने इसकी अंजनशलाका करवाई है / इसकी वर्षभर में एक ही वार वैशाख सुदि 6 के दिन पूजा की जाती है / जो शजय के अन्तिम उद्धार का वार्षिक दिन गिना जाता है / यहाँ पर खड़े रह कर पर्वत के शिखर पर नजर डालने से, सभी मन्दिर मानों पवन से फरकते हुए अपने ध्वजरूप हाथों द्वारा अपने गर्भ में बिराजमान अहंबिम्बों को पूजने के लिये आव्हान कर रहे हों, ऐसा आभास होता है। 4 चौथी-प्रेमचंद मोदी की टोंक-अहमदावाद के ध निक मोदी-प्रेमचंद सेठने शत्रुजय तीर्थ की यात्रा करने के लिये एक बड़ा भारी संघ निकाला था / तीर्थ की यात्रा किये बाद उनका दिल भी यहाँ पर मन्दिर बनाने का हो गया। लाखों रुपये खर्च करें यह टोंक बनवाई और इसकी प्रतिष्ठा करवाई। इसमें छः बड़े मन्दिर और 51 देवरियाँ बनी हुई है ! इस सेठने अपनी अगणित दौलत धर्म–कार्य में खर्च की थी। कर्नलटाड साहबने अपने पश्चिम भारत के प्रवास वर्णन में लिखा है कि " मोदी-प्रेमचंद की दौलत का कुछ ठिकाना नहीं था, उसकी कीर्तिने संप्रति जैसे प्रतापी गौर उदार राजाओं की कीर्ति को भी ढॉक दी है।" .
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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