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________________ प्रधान सेठ हठीभाई भी वहाँ पर आये हुए थे / शत्रुजय के दोनों शिखरों के मध्य में एक बड़ी भारी और गहरी खाई थी। इसे कुन्तासार की खाड़ कहा करते थे। मोतीसाह सेठ ने अपने मित्र सेठ हठीभाई से कहा कि___"गिरिराज के दोनों शिखर तो मन्दिरों से भूषित हो रहे हैं, परन्तु यह मध्य की खाई, दर्शकों की दृष्टि में अपनी भयंकरता के कारण, आंख में कंकर की तरह खटकती है / मेरा विचार है कि इसे पूर कर ऊपर एक टोंक बनवा दूं।" यह सुन कर हठीभाई सेठने कहा " पूर्वकाल में जो बड़े बड़े राजा और महामात्य हो गये हैं वे भी इसकी पूर्ति न कर सके तो फिर तुम उस पर टोंक कैसे बनवा सकते हो ?" भोतीसाह सेठ ने हंस कर जवाब दिया कि "धर्मप्रभाव से मेरा इतना सामर्थ्य है कि पत्थर से तो क्या? परन्तु सीसे की पाटों से और सकर के थेलों से इस खाई को पूरा कर सकता हूं।" बस, यह कह कर सेठने उसी दिन, वहाँ पर टोंक बांधने के लिये संघ से इजाजत ले ली और खाई को पूर्ण करने का प्रारंभ कर दिया / थोड़े ही दिनों में उस भीषण गर्त को पूर्ण कर, ऊपर सुन्दर टोक बनाना प्रारंभ की / लाखों रुपयों की लागत का बहुत ही भव्य और साक्षात् देवविमान के सदृश मन्दिर तैयार करवाया।
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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