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________________ (38) जैनों के 130 घर, एक उपासरा, दो बडी धर्मशाला और छः जिनमन्दिर हैं। - सब से बडे और प्राचीन मन्दिर में भगवान् श्रीशान्तिनाथ स्वामी की एक हाथ बडी सफेद संगमर्मर की मूर्ति बिराजमान है, जो सातसौ वर्ष की प्रतिष्ठित और अति प्रभावशालिनी है। इसके चारों ओर चोवीस देवरियाँ हैं, जिनमें नयी प्रतिमाएँ विराजमान की गई हैं। दूसरा मन्दिर भगवान श्रीआदिनाथस्वामी का, जो विक्रम की अठारहवीं शताब्दी का बना हुआ और बावन जिनालय है / इसके दाहिने भाग की बगीची में एक मकराणा-पाषाण की सुन्दर छत्री में जैनाचार्य श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज की भव्य मूर्ति स्थापित है। तीसरा भगवान् श्रीशान्तिनाथ का और चौथा भगवान् श्री महावीर स्वामी का मन्दिर हैं जो नये बनाये गये हैं और इन की प्रतिष्ठा सं० 1937 तथा 1954 में हुई हैं। पांचवां मन्दिर भगवान् श्रीसीमन्धरस्वामी का है, जो बिलकुल नया, सफाईदार और रेवाँ-विहार के नाम से प्रसिद्ध है / इसके बाहर के मंडप की सीढियों के दाहिनी बगल पर प्रतिष्ठा के समय इस प्रकार शिला-लेख लगाया गया है.. "त्रिस्तुतिक-जैनश्वेताम्बरीय बीसा पोरवाड चत-' राजी रूपचंद, किशनलाल, जवेरचन्द, गेन्दालाल, केसरीमल, मोतीलाल, धनराज पारखने संवत् 1981 में रेवां-विहार नामक जिन-मन्दिर बनवाया और
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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