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________________ ( 290) श्रीमुनिसुंदरमूरि-श्रीजयसुंदरसूरि पट्टे श्रीविशालराजमूरि पट्टे श्रीरत्नशेखरमूरि पट्टे श्रीलक्ष्मीसागरमूरि-श्रीसोमदेवमूरि शिप्य श्रीसुपतिसुंदरमूरि शिष्य गच्छनायक श्रीकमलकलशरि शिष्य संप्रतिविजयमान गच्छनायक श्रीजयकल्याणमूरिभिः श्री चरणसुंदरसूरि प्रमुखपरिवारपरिवृतैः / सं० सोना पुत्र सं० जिणा भ्रातृ सं० आसाकेन भा० आसलदे पुत्र........युतेन कारितप्रतिष्ठामहे श्रीरस्तु / सूत्रवाछा पुत्र मू० देवा पुत्र मू० अरबुद पुत्र मू० हरदास / -विक्रम सं० 1566 फाल्गुन सुदि 10 के दिन अचलगढ के राजाधिराज श्रीजगमालजी के शासन काल में पोरवाड सं० कुरपाल के पुत्र सं० रत्ना, सं० धरणा, सं० रत्ना के पुत्र सं० लाखा, सं० सलखा, सं० सोना, सं० सालिग, सालग की स्त्री सुहागदे के पुत्र सं० सहसाकने अपनी स्त्री संसारदे उसका पुत्र खीमराज, दूसरी स्त्री अनुपमदे का पुत्र देवराज, खीमराज की स्त्री रमादे के पुत्र जयमल्ल, मनजी प्रमुख कुटुम्ब सहित खुद के बनवाये चतुर्मुख मन्दिर के उत्तर द्वार में धातुमय मूलनायक आदिनाथजी का बिम्ब कराया। तपागच्छनायक श्रीसोमसुन्दरसूरि, तत्पट्टे मुनिसुन्दरसूरि, जयसुन्दरसूरि, तत्पट्टे विशालराजसूरि, तत्पट्टे रत्नशेखरसूरि, तत्पट्टे लक्ष्मीसागरसूरि-सोमदेवसूरि, उनके शिष्य सुमतिसुन्दरसूरि, उनके शिष्य गच्छनायक कमलकलशसूरि के शिष्य वर्तमान गच्छनायक जयकल्याणसूरिजीने चरणसुन्दरसूरि प्रमुख शिष्य परिवार से उसकी प्रतिष्ठा की।
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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