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________________ ( 282) छठ्ठा और सातवां पद्य खंडित है, तथापि उनसे यह मतलब निकलता है कि 6-7 प्राचार्य शान्तिभद्र के समय में सं० 1084 चैत्र सुदि 15 के दिन पूर्णभद्रसूरिने भगवान श्रीऋषभदेव के बिंब की प्रतिष्ठा की और राजा रघुसेनने उसकी प्रतिष्ठा कगई / मंगल और महाशोभाकारक हो / ' पृ० 216-20 2 भीलडिया- (4' ). 1-" सं० 1215 वैशाखसुदि 9 के दिन श्रेष्ठी तिहणसर की स्त्री हांसी के श्रेय के लिये सा० रतना मानाने शान्तिनाथजी का बिम्ब कगया और उसकी प्रतिष्ठा.......गच्छीय वर्द्धमानसूरि के शिष्य रत्नाकरमूरिजीने की / पृ० 225 ___ 2-" सं० 1324 वैशाखवदि 5 बुधवार के दिन श्रीगौतमस्वामी की प्रतिमा की प्रतिष्टा श्रीजिनेश्वरसूरि शिष्य श्रीजिनप्रबोधसूरिने की और सा...... ....के पुत्र सरिवइजनने अपने भाई मूलदेव आदि के सहित स्व और कुटुम्ब के कल्याणार्थ यह प्रतिमा कराई।" पृ०२२५ मु० थराद ( उत्तर गुजगत )) श्रीवीर सं० 2455 ना० 25-12-1928 व्याख्यानवाचस्पतिमुनि-श्रीयतीन्द्रविजय,
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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