________________ (270.) के ऊपर श्रीपूर्णदेवाचार्य के शिष्य श्रीरामचन्द्राचार्यने स्वर्णकलश की प्रतिष्ठा ( स्थापना ) की, कल्याण हो / "पृ० 180 __ भंडारी पांसू का पुत्र यशोवीर उस समय जालोर में जैन समाज का एक मुख्य श्रीमान् और राजमान्य था और इसने एक आदिनाथ का भव्य मन्दिर बनवाया था। उसमें यात्रोत्सवों के समय भजने के लिये वादिदेवसरिजी के प्रशिष्य और जयप्रभसूरि के शिष्य कविरामचन्द्रने 'प्रबुद्धरोहिणेय' नामक नाटक की रचना की थी। नाटक में पारिपार्श्व के प्रवेश होने वाद सूत्रधार उच्चरित अवतरण से पता लगता है कि- यशोवीर के उसीके सम न गुणवाला अजयपाल नामका एक छोटा भाई भी था। ये दोनों भाई राज्यकर्त्ता चाहुमान समरसिंहदेव के अत्यन्त प्रीतिपात्र, सब लोगों के हितचिन्तक, जैनधर्म की उन्नति के अभिलाषी और बडे भारी दानेश्वरी थे। ___ जालोर के लेखसंग्रह में से जालोर निवासी और समकालीन नामाङ्कित तीन यशोवीर का पता मिलता है। एक लेख नं० 14 में बताया हुआ श्री श्रीमालवंश विभूषण शेठ यशोदेव का पुत्र यशोवीर, दूसरा लेख नं. 15 में बताया हुआ भां० पांसु का पुत्र यशोवीर और तीसरा उदयसिंह का पुत्र कविबन्धु यशो वीर मंत्री, यह गुर्जर महामात्य, वस्तुपाज का मित्र था और जालोर के राजा उदयसिंह का मंत्री (महामात्य) था / - (22) ३-"सं० 1294 में श्रीमाली जाति के श्री वीसल का पुत्र नागदेव, नागदेव के पुत्र देल्हा, सलक्षण, और झापा / झापा