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________________ (267) कर रहा है; ऐसे त्रैलोक्यलक्ष्मी के विस्तीर्ण कुल भवन, धर्मरूप वृक्ष के आलवाल (क्यारेरूप ) श्रीमान् नामेयनाथ ( श्रीऋषभदेव ) के चरणकमलयुग आप लोगों को मंगल का विस्तार करें. श्रीचाहुमानकुलरूप आकाश में चन्द्र समान महाराज श्री अणहिल के वंश में उत्पन्न, महाराज आल्हण के पुत्र, निज कार्यावलियोंसे प्रबल शत्रुदलों को जीतनेवाले महाराज के शासनकाल में उनके चरणकमलों का सेवक, निजप्रौढ प्रताप से पा. ल्वाहिक प्रान्त के समस्त तस्करों को स्वाधीन करनेवाले राज्यचिन्तक जोजल-राजपुत्र के वर्तमान समय में २-शत्रुकुलरूप कमल के लिये चन्द्रसमान, पुण्यरूप सौन्दर्य का पात्र, नीति और विनय का विस्तार करनेवाला, सौन्दर्य और लक्ष्मी का धाम (गृह), संसार की युवतियों के नेत्रों को आनन्द देनेवाला, और सिंह के समान पराक्रमी राजा समरसिंह जयवन्त है / और ३-औत्पत्तिकी आदि चार बुद्धियों से राजभवन के योग्य कार्यों का निर्णय करनेवाले और निजप्रबल भुजाओं से शत्रुओं के दुर्जय पक्ष का अन्त करनेवाला जोजल नामका जिस ( समरसिंह ) का मामा था। चन्द्रगच्छ के मुख का मंडन, सुविहित साधुओं के घर, श्रीचन्द्रसूरिजी के चरणकमलद्वय में विलसित राजहंस के समान, श्रीपूर्णभद्रसूरिजी के चरणारविन्द में विचरनेवाले चतुर भ्रमर के समान, समस्त भावकों (गोष्ठिकों) से युक्त श्रीश्रीमालवंश का
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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