________________ (264) (14) ३-थांथा के पुत्र राल्हा और पाल्हाने अपनी माता के स्मरणार्थ यह स्तंभ दिया-बनवाया। सं० 1236 कार्तिक वदि 2 बुधवार के दिन नाडोल के महाराजाधिराज श्री केल्हणदेव के राज्यकाल में राणी जाल्हणदेवी की भक्ति में आये हुए सांडेराव के देव श्रीपार्श्वनाथ की सेवा में थांथां का पुत्र राल्हाक और राल्हाक का भाई पाल्हाक, उस के पुत्र सोढा, शुभकर, रामदेव, धरणि, हर्ष, वर्द्धमान, लक्ष्मधिर, सहतिग, सहदेव, रासा, धरण, हरिचन्द्र, वरदेव आदिने मिलकर अपना निज घर समर्पण किया। राल्हाक के घर में वसनेवाले मनुष्यों को प्रतिवर्ष 4 द्रायेला देना और शेष जनों को साधु गोष्ठिकों के साथ इसकी अच्छी तरह संभाल रखना चाहिये। सं० 1236 ज्येष्ट सुदि 13 शनिवार के दिन माता धारमती के पुण्चार्थ स्तंभ का उद्धार किया।" पृ० 154 2 भूति- (15) १-सं० 1969 शाके 1834 माघसुदि 10 के दिन मंडवारिया निवासी, खूमाजी सुत जेठा डाहा विनयचन्द्र की कराई हुई अञ्जनशलाका में भूति के रहनेवाले पोसवाल वेदमूथा खीमा सुत सहसमल की माता केशादेने श्रीमहावीरबिम्ब की अञ्जनशलाका कराई और सौधर्मबृहत्तपोगच्छीय श्रीविजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी के शिष्य श्रीधनचन्द्रसूरिजीने अञ्जनशलाका की / यह लेख उपाध्याय मोहनविजयजीने लिखा / " पृ० 162