________________ (241) 136 में हुई है / कहा जाता है कि थिरपालधरुने संवत्-१०१ में थराद कसबा वसाया और सं० 136 में इस प्रतिमा को भराईबनवाई। यह प्रतिमा पहले थराद में विराजमान थी परन्तु थराद पर जब मुसलमान बादशाहों का हमला आया, तब वहाँ से यह प्रतिमा वाव पहुंचा दी गई। दूसरे मन्दिर में श्रीऋषभदेव स्वामी और तीसरे मन्दिर में श्रीगोडीपार्श्वनाथ की डेढ़ डेढ़ फुट बडी मूर्तियाँ स्थापित हैं, जो प्रायः विक्रमीय 18 वीं सदी की प्रतिष्ठित हैं / इन दोनों मन्दिर में छोटी बडी सर्वधात की चोवीसी और पंचतीर्थयाँ 200 के अन्दाजन हैं, जिनकी बराबर पूजा भी नहीं होती / यहाँ के जैन आडम्बरी, कलहप्रिय और विघ्नसन्तोषी हैं / इसी कारण स्वच्छन्दचारी साधुओं के सिवाय यहाँ किसी अच्छे क्रिया पात्र साधु की स्थिरता नहीं होती। ईटाटा यहाँ जैनों के एक ही गोत्र के सात घर हैं जो अच्छे भा. वुक, साधुभक्ति करनेवाले और धर्मजिज्ञासु हैं। यह गाँव थराद से वायव्य कोणमें पांच कोश के फासले पर है। यहाँ के जैनेतर लोग भी अच्छे सत्संगी और वास्तविक साधुओं के अनुरागी हैं। छोटा गाँव होने से यहाँ देहरासर या उपासरा नहीं है, साधुओं को गृहस्थों के मकान में ही ठहरना पडता है /