________________ (स) थारापद्रमहागच्छे, पुण्ये पुण्यैकशालिनाम् / श्रीपूर्णचंद्रसूरीणां, प्रसादाग्लिख्यते यथा // 3 // स्वस्तिसंवत् १३३३वर्षे आश्विनसुदि१४ सोमे अधेह श्रीश्रीमाले महाराजकुलश्रीचाचिगदेवकल्याणविजयिराज्ये तनियुक्त महं. गजसिंहप्रभृतिपंचकुलप्रतिपत्तौ श्रीश्रीमालदे शवहिकाधिकृतेन नैगभान्वयकायस्थमहत्तमसुभटेन तथा चेहककर्मसीहेन स्वश्रेयसे अश्विनमासीययात्रामहोत्सवे आश्विन सुदि१४चतुर्दशीदिने श्रीमहावीरदेवाय प्रतिवर्षे पंचोपचारपूजानिमित्तं श्रीकरणीयपंचसेलहथडाभीनरपालं च भक्तिपूर्व संबोध्य तलपदे हलसवडीपदमध्यात् फरकरहलसहडीए. कसक्तद्र०२२ सप्तविंशोपकोपेतपंचद्रम्माः। तथा सेलहथाभा व्ये आठडां मध्याद् अष्टौ द्रम्मा। उभयसप्तविंशोपकोपेतत्रयो दशद्रम्मा आचंद्रार्क देवदाये कारापिताः वर्तमानपंचकुलेन वर्तमानसेलहथेन देवदायकृतमिदं स्वश्रेयसे पालनीयं / " . -जो पहले महास्थान श्रीमालपुर (भीनमाल) में स्वयं पधारे थे, वे श्रीमहावीरदेव आपको सुखसंपत्ति देवें 1, जन्म मरणरूप भवों से दुःखित जीव जिसके शरण को प्राप्त हुए उन महावीरप्रभु की पूजा के लिये यह नवीन शासन ( फरमान-पत्र ) किया 2, थारापद्रगच्छ के आचार्य श्रीपूर्णचन्द्रसूरि के प्रसाद से प्रस्तुत लेख लिखा जाता है 3, जैसे संवत 1333 आसोजसुदि१४ सोमवार के दिन इस श्रीश्रीमालनगर में महाराजकुल श्रींचाचिगदेव के शासनकाल में