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________________ ( 234) कायम करके मूर्ति की स्थापना इसी स्थान पर कर दी / उस समय से चौहान और थराद के श्रीमाली महाजनोंने नाणदेवी ( आशापुरी-माता ) को कुलदेवी तरीके मानना शुरू की। दूर प्रदेशों में जा कर बसे हुवे श्रीमाली महाजन अब भी यहाँ अा कर पुत्रजन्म और लग्नादि प्रसंगों पर जुहार करने को आते हैं / कटुकम तिगच्छीय शाहजी धनजी रचित 'माजी भाशापुरी' के छन्द में लिखा है कि मारं स्थल भीनमालथी, भावतां गुर्जर मांह। * स्वप्नुं रयणी आपीयुं, परमार ध्रुवने त्यहि // 14 // : तुज साथे रथ जेह छे, तेनुं बेटे नाण / ते स्थाने मुज नामथी, स्थिरपुरी करवी ठाण // 15 // तेहिज रथ लइ पावतां, बेटयुं ज्यां ते नाण / स्थिरपुरी नगरी त्यां वसी. मात प्रतापे जाण // 16 // मात नाम आशापुरी, द्वितीय कल्पना नाम / नाणदेवी पण नामथी, नमे लोक निज काम // 17 // धेनु झरे वली जे स्थले, भुवन निपावो त्यांह / मुज प्रतिमा त्यां स्थापिने, तीर्थ भजो मन माह // 18 // धेनु उरोज न पण वह्यु, मातस्थान थयुं तेह / प्रत्यक्ष परचो पेखिने, सहु धरी आबे नेह // 19 // इस छन्द में लिखी गई हकीकत बिन पायेदार मालूम पडती है। क्योंकि नाणदेवी माता के एक स्तंभ पर के लेख से
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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