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________________ (233) तनाथ भगवान् की थी, जिसकी प्रतिष्ठाञ्जनशलाका थिरपुर स जाने बाद विक्रम संवत् 136 श्रावण वदि. अमावास्या बुधवार के दिन हुई थी / यह मूर्ति सर्वघात की है, तथा 31 इंच बडी है और इस समय यह वाव-स्वस्थान में विराजमान है। किंवदन्ती से मालूम पड़ता है कि मुसलमानी हमलों के भय से यह प्रतिमा थराद से वाव भेज दी गई। ___थराद से पूर्वोत्तर कोण में अन्दाजन पौन मील के फासले पर नाणदेवी का देवल है, जो चौहानों के शासन काल में बनाया गया था। थरादवासियों का कहना है कि विक्रम की 14 वीं सदी में नाणदेवी की हद तक थराद वसती थी और यह देवल नगर के नाके पर था / इसका असली नाम आशापूरी माता है और इसके विषय में यह किंवदन्ती प्रचलित है कि-नांदोल जागीर जब चौहानों के हाथ से निकल गई, तब चौहान सरदार निराश हो गये / उनकी निराशता को मिटाने के लिये आशापूरी माताने स्वप्न में दर्शन दिये और धैर्य बंधाकर कहा कि भीनमाल से तुम लोग मेरी मूर्ति गाड़ी में रख कर ले जाओ। जहाँ पर गाड़ी की नाण ( डोरी ) टूट जाय वहीं मूर्ति की स्थापना कर देना, इससे तुम्हें फायदा पहुंचेगा। देवी के कथनानुसार चौहान सरदार मूर्ति को भीनमाल से गाड़ी में रख के थराद तरफ रवाने हुए और इस स्थान पर आये कि गाडी की नाण टूट गई। चौहानोंने नाणदेवी नाम
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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