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________________ (106) शहर से दक्षिण 80 वार दूर पूर्व में एक इंटो की बनी हुई टेकरी (धोरासा) है, जिस पर सूर्य ( जगसोम ) का सौधशिखरी दो मंजिला मन्दिर था, जो दो ओसवाल और एक पोरवाड़ का बनवाया हुआ था / सूर्य-मन्दिर के छबने के एक खंडित पत्थर पर लिखा है कि संवत् 1117 माहसुद 6 के दिन परमार राजा कृष्णदेव के समय में दो ओसवाल और एक पोरवाड जैनने मिलकर इसका उद्धार किया। इससे विदित होता है कि जैनोंने इसका उद्धार कराया है / दर असल में इस मन्दिर को सूर्यपूजक किसी शक, या हून जाति के राजाने सन् 166 ईस्वी में बनवाया था / कहा जाता है कि 42 फीट पहोली, 60 फीट लंबी और 20 फिट ऊंची टेकरी पर यह मन्दिर बनाया गया था और इसका भीतरी प्रदक्षिणा मार्ग चार फीट पहोला तथा ग्यारह फीट लंबाईवाला था। एक दन्तकथा में इसके बनने का कारण यह बताया जाता है कि परमाहत राजा कुमारपाल के पांचसौ वर्ष पूर्व सन् 680 इस्वी में यहां जगसोम नामक राजा हो गया है जो कनक, कनिष्क, या कनिष्कसेन इन नामों से भी प्रसिद्ध था। उसके पेट में सर्प था, जिससे उस को बहुत तकलीफ होती थी और शरीर भी दुर्बल हो गया था / एकदा समय राजा दक्षिण दरबाजे के पास गया और शीतल छाया देख कर सो गया। इस समय राजा फे पास एक कायस्थ उसकी सुरक्षा के लिये बैठा हुआ था। राजा को निद्रा आने बाद उसके पेटवाले सांपने अपना मुंह बाहर निकाला / उसे देखकर किसी भू-निवासी सांपने कहा कि तुं राजा के पेट से निकल जा और राजा को निश्चिन्त
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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