________________ (105) - ३-संवत् 1683 आषाढवदि 4 गुरौ मूत्रधार उद्धरण तत्पुत्र तोडरा-ईसर-डाहा-दुहा-हाराकेन कारापितं, प्रतिष्ठितं त'पागच्छे भ० श्रीविजयदेवमूरिभिः / ४-संवत् 1681 वर्षे प्रथम चैत्र वदि ! गुरौ श्रीमुहणोत्रगोत्रे सा० जेसा भार्या जसमादे पुत्र सा० जयमल भार्या सोहागदेवी श्रीआदिनाथबिंबं कारित प्रतिष्ठामहोत्सवपूर्वक, प्रतिष्ठितं च श्रीतपागच्छे श्री 6 विजयदेवसूरीणामादेशेन जयसागरगणिना। ५-संवत् 1684 माघसुदि 10 सोमे श्रीमेडतानगरवास्तव्य उकेशज्ञातीय पामेचागोत्रतिलक सं० हर्षा लघुभार्या मनरंगदे सुत संघपति सामीदासकेन श्रीकुंथुनाथविवं कारितं, प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छे श्रीतपागच्छाधिराज भट्टारक श्रीविजयदेवसूरिभिः श्राचार्यश्रीविजयसिंहरिप्रमुखपरिवारपरिकरिसेः; श्रीरस्तु। ___ ये पांचों लेख मुनिजिनविजयलिखित 'प्राचीन जैनलेखसंग्रह' द्वितीयभाग के पृष्ठ 213 से उद्धृत किये गये हैं और उसमें ये लेखाङ्क 354, 355, 356, 358 और 359 नम्बर तरीके दर्ज किये गये हैं। 161 मांडवला__ यहाँ ओसवाल जैनों के 110 घर हैं, जो जिज्ञासु पर साधुओं के अनागमन से विवेकशून्य हैं / गाँव में एक उपासग, एक धर्मशाला और उपासरा के एक कमरे में गृहमन्दिर है जिसमें