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________________ ( 178) उनमें से पांच छः शिला-लेख जो अच्छी तरह वांचे जा सकते हैं, यहाँ ज्यों के त्यों उध्दृत कर दिये जाते हैं / 1 बांये हाथ को शाला के छबने मेंशश्वत् त्रैलोक्यलक्ष्मीविपुलकुलगृहं धर्मवृक्षालवाल, श्रीमन्नाभेयनाथक्रमकमलयुगं मङ्गलं वस्तनोतु / मन्ये मङ्गन्यमाला प्रणतभवभृतां सिद्धिसोधप्रवेशे, यस्य स्कन्धप्रदेशे विलसति गवलश्यामलाकुन्तलाली // 1 // ___ श्रीचाहुमानकुलाम्बरमृगाङ्क श्रीमहाराज-अणहिलान्वयोद्भवश्रीमहाराज-पान्हणसुतकार्यावली-दुर्ललितदलितरिपुबलश्रीमहाराजकीर्तिपालदेवहृदयानन्दिनन्दन-महाराजश्रीसमरसिंहदेवकल्याणविजयराज्ये तत्पादपरोपजीविनि निजनौढिमातिरेकतिरस्कृतसकल पील्वाहिकामण्डलतस्करव्यविकरे राज्यचिन्त के जोजलराजपुत्रे, इत्येवं काले प्रवर्त्तमानेरिपुकुलकमलेन्दुः पुण्यलावण्यपात्रं, नयविनयविधानं धामसौन्दर्यलक्ष्म्याः / धरणितरुणनारी लोचनानन्दकारी, जयति समरसिंहमापतिः सिंहवृत्तिः // 2 // तथाभौत्पत्तिकीप्रमुखबुद्धिचतुष्टयेन, नितिभूपभवनोचितकार्यवृत्तिः। ... यन्मातुलः समभवकिल जोजलाहो, ... : दोर्दण्डखण्डितदुरन्तविपचपचः // 3 //
SR No.023534
Book TitleYatindravihar Digdarshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSaudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh
Publication Year1925
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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