________________ (150) यहाँ पर श्वेताम्बरजैनों में ओसवालों के 300, और पोरवाड़ों के 325 घर हैं, जिनमें सनातन-त्रिस्तुतिक संप्र. दाय के 35 और स्थानकवासियों के नाममात्र के 15 घर हैं। यहाँ के जैन जिज्ञासु और गुणिसाधुओं की कदर करने वाले हैं। गाँव में चार बड़ी बड़ी पक्की धर्मशालाएँ और पांच उपासरे हैं, जो हजारों की लागत के हैं। यहाँ बड़े आलिशान तीन सौधशिखरी और चार गृह जिन-मन्दिर हैं। ___सब से बड़ा मन्दिर जो बाजार के पश्चिम किनारे पर है और मोटा-मन्दिर के नाम से पहचाना जाता है। इसका वहीवट श्रोसवालों के हाथ में है और इसमें मूलनायक श्रीरिखभदेवस्वामी की सफेद वर्ण की तीन फुट बढ़ी सुन्दर मूर्ति स्थापित है, जिसकी प्रतिष्टा सं० 1928 वैशाख सुदि 3 के दिन हुई है / इसके पास ही दूसरी मूर्ति श्यामरंग की श्रीऋषभदेवजी की है, जो सं० 1921 माघसुदि 13 सोमवार की और तीसरी मूर्ति सं० 1962 माघसुदि 11 की प्रतिष्ठित है। इसके अलावा मण्डप में कई प्रतिमाएँ विराजमान हैं, जो प्राचीन और अर्वाचीन हैं और कहीं से लाकर यहाँ पछि से बैठा दी गई हैं। दूसरा मन्दिर पोरवाड़ों का, जो बहुत ऊंची खुरशी पर त्रिशिखरी बना हुआ है / इसकी बनावट अतिसुन्दर, सफाईदार और दर्शनीय है / इसमें मूलनायक श्रीऋषभदेवजी की भव्यमूर्ति है, जिसकी प्रतिष्टा सं० 1943 फाल्गुनसुदि 5 के दिन हुई है / इस मन्दिर की छोटी बड़ी सभी प्रतिमाएँ पालीताणा से लाई हुई हैं और इनकी अञ्जनशलाका सं० 1921 में हुई है।