________________ (120 ) राजेन्द्रसरिशिष्येषु, यतीन्द्रविजयाभिधाः। भुवनामृतविजयास्तथा तदनुगाः सदा // 4 // सर्वे सम्प्राप्य तत्रैव, सिरोड़ीनगरे खलु / मन्दिरे पार्श्वनाथस्य, जीणे दण्डेन खण्डिते // 5 // ध्यगाकेन्दुमिते वर्षे, ज्येष्ठे मास्यसिते दले / प्रतिपद्गुरुणा युक्त, मुहुर्ते विजयाभिधे // 6 // महोत्सवं च पूजां च, कारयित्वा विधानतः। सुवर्णदण्डकलशारोहणं कारितं च तैः // 7 // " गाँव के बाहर सिरोही जानेवाली सड़क के दाहिने भाग में एक सुन्दर मन्दिर है, जिसमें बिना गढ़ा हुआ एक पत्थर स्थापित है जो वामनवाड़ के नाम से पूजा जाता है / लोग कहते हैं कि कारीगर ( सलावट ) इसकी महावीर प्रतिमा बनाने लगे, परन्तु टांकियाँ इस पर बेकार हो गई और टूट गई, बहूत प. रिश्रम करने पर भी यह गढ़ा नहीं गया तब लोगोंने इसको बिना गढ़ा हुआ ही ज्यों का त्यों स्थापित कर दिया / 104 मेड़ा इस छोटे गाँव में श्वेताम्बर जैनों के 20 घर, एक उपासरा और एक जिन मन्दिर हैं-जिसमें भगवान् श्रीशान्तिनाथस्वामी की मूर्ति स्थापित है जो अर्वाचीन है / यहाँ से 4 मील के फासले पर बाबू की छोटी त्रिकोण पहाड़ियों के बीच में हमीरगढ़' नामक स्थान है जो किसी समय बड़ा आबाद शहर था। अभी यहाँ खंडहरों के सिवाय बिलकुल आबादी नहीं है। इसके