________________ (105 ) इस पवित्र तीर्थ पर इस समय राजा कुमारपाल की स्थापित अजितनाथप्रतिमा नहीं है / मुनिसुन्दरसूरिजी रचित श्रीतारणदुर्गालङ्कार श्रीअजितस्वामीस्तोत्ररत्न के लेखानुसार कुमारपाल स्थापित प्रतिमाको म्लेच्छोंने उठा के अलग कर दी / फिर गोविन्दसंघवीने उसी जगह दूसरी प्रतिमा प्रतिष्ठित की जो अब तक तारंगा-पर्वत पर पूजी जा रही है / तारंगा के मुख्य मन्दिर के ही बाह्य-द्वार पर दोनों और महामात्य वस्तुपाल के बनवाये हुए दो खत्तक (देवरी आकार के ताक ) हैं जिसमें सं० 1296 में जिनप्रतिमाएँ स्थापित की गई थी, परन्तु वे अब नहीं हैं, इस समय उन में यक्ष यक्षिणी की मूर्तियाँ स्थापित हैं / इसी मन्दिर के कोट के पास ही अग्निकोन में नन्दीश्वर और अष्टापद के दो छोटे मन्दिर हैं। मन्दिर से पूर्व 1 मील 'चढ़ाववाली एक टेकरी है जो पुण्यपाप की बारी के नाम से पहिचानी जाती है / इसकी टोंच पर एक देबरी है जिसमें स्थित प्रतिमा के परिकर में सं० 1275 वैशाखसुदि 3 का लेख है, देवरी के नीचे एक गुफा में चरण-पादुका भी स्थापित हैं। मुख्यमन्दिर से दक्षिण कोटिशिला और उत्तर सिद्धशिला नामकी ऊंची दो टेकरियाँ हैं जिन पर देवरियाँ बनी हुई हैं और जिनप्रतिमाएँ स्थापित हैं। इन टेकरियों पर श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों की देवरियाँ तथा प्रतिमाएँ हैं / सिद्धशिला-टेकरी के रास्ते में पत्थरों की छोटी छोटी गुफाओं में दिगम्बर-मूर्तियाँ भी दृष्टिगोचर होती