________________ (11) के उपदेश-श्रवण से अपने भावी उपकारक समझ कर आषाढी श्रावकने भराई और प्रतिष्ठाजनशलाका कराई / कितने एक काल बाद यह प्रतिमा धरणेन्द्रजी के द्वारा भगवान् श्रीकृषभदेवस्वामी के प्रपौत्र नमि विनमि विद्याधर राजाओं को प्राप्त हुई / बाद में इस दिव्य प्रभावशालिनी मूर्ति को प्रथम देवलोकाधिपति शक्रेन्द्रजीने लेजा कर अपने विमान-चैत्य में स्थापित की, वहाँ देव देवेन्द्रों से पूजी गई / कितने एक समय बाद शक्रेन्द्रने गिरनार-पर्वत के कांचनबलानक नामके शिखर पर बिराजमान की। ___तदनन्तर सूर्यविमान में, उसके बाद चन्द्रविमान में, उसके बाद उज्जयन्तगिरि पर, उसके बाद नागेन्द्र-भवन में, और उसके बाद धरणेन्द्र-भवन में यह प्रतिमा पूजी गई / बाद में पद्मावती के कहने से धरणेन्द्रजीने श्रीकृष्ण को दी। श्रीकृष्णने इस प्रतिमा का अभिषेकजल छांट कर अपनी जराविद्या से मूर्छित सेना को अच्छी की और भगवान् श्रीनेमनाथने जहाँ शंख पूर करके यादवसेना की रक्षा की थी, उसी जगह शंखपुर नामक नया गाँव बसा कर और सुन्दर मन्दिर बना कर, उसमें इस चमत्कारिणी भव्यमूर्ति को बिराजमान की। तब से यह मूर्ति श्रीशंखेश्वर-पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुई / संवत् 1151 में सज्जनमंत्रीने यहाँ के मूल मन्दिर, बावन देवरियाँ और गढ़ वगैरह का पुनरुद्धार कराया था। बाद में विक्रम की तेरहवीं शताब्दी के अन्त में श्रीवर्द्धमानसूरिजी के उपदेश से महामात्य वस्तुपालने फिर से इसका उद्धार कराया था।