________________ (493) भावार्थ-संसार विपत्तियों की खानि है। उनमें पड़े हुए प्राणियों के लिए माता, पिता, मित्र, भाई आदि कोई भी शरण नहीं है / उनको शरण है तो केवल एक धर्म है। 2 इन्द्र और उपेन्द्रादि भी मृत्यु के आधीन हो जाते हैं, तो फिर प्राणी यमराज के भयसे बचने के लिए, किसका शरण लें ? ( कोई मी शरण नहीं है / ) 3 माता, पिता, भाई, बहिन और पुत्रादि सब देखते रहते है; बिचारा शरण-हीन जीव पकड़ लिया जाता है और यमरान के घर पहुंचा दिया जाता है / 4 जो मन्द बुद्धी होते हैं वे ही कर्मद्वारा कालधर्मप्राप्त अपने स्वजन सम्बंधियों की चिन्ता करते हैं / भगर उनको यह चिन्ता नहीं होती है कि, उनको भी काल उठा ले जायगा। 5 दुःख दावानल की भयंकर. ज्वालाओं से संसाररूपी अरण्य के अंदर बसते हुए जीवरूपी मृग की रक्षा करनेवाला कोई भी नहीं है। 6 अष्टांगनिमित्त, आयुर्वेद, जीवनप्रद औषध और मृत्युनपादि मंत्रोंद्वारा भी मनुष्य काल के मुखसे नहीं बच सकता है। ( मृत्यु के समय चाहे कैसे ही बड़े बड़े डॉक्टरों का इलाज कराओ; चाहे कैसे ही शान्ति पाठ पढ़वाओ, जीव कभी मृत्यु के मुखसे नहीं बच सकता है / ) 7 राजा को भी, भले तलवार के पिंजरे में बैठा हो; मले हाथी, घोड़े और पैदल रूप चतुरंगिणी सेना से घिरा हुआ हो-यमराज के नौकर एक रंक की तरह जबर्दस्तीसे पकड़ कर, ले जाते हैं। 8 पशु जैसे मौतसे बचने