SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 592
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सेठिया जैन अन्यमा (2) अतिरूप अनूप रतीपति तें. नसचीपति ते अनुभूति घटी है / कवि 'वृन्द दशों दिशि कीरति की, मनों पूरनचंद प्रभा प्रगटी है // सब ही विधि सों गुनवान बड़े, बल बुद्धि विभा नहिं नेक इटी है / जिनचंद-पदाम्बुज प्रीति बिना, . जिमि "सुन्दर नारी की नाक कटी है"॥ नर जन्म अनुपम पाय अहो, श्रष ही परमादन को हरिये / सरवज्ञ अराग अहोषित को, धरमामृतपान सदा करिये // अपने घर को पट खोलि सुनो, _ अनुभौ रसरंग हिये धरिये / भवि 'वृन्द' यही परमारथ की, करनी करि भौ तरंनी तरिये // ... (अशोक पुष्पमंजरी).. जै जिनेश ज्ञान भान भव्य कोक शोक हान, लोक-लोक लोकवान लोकनाथ तारकं / ज्ञानसिंधु दीनबंधु पाहि पाहि पाहि देव, ... . व रक्ष रक्ष मोक्षपाल शोलधारकं //
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy