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________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला और प्रसन्न रहती है / इसके विरुद्ध आचरण करने वालों को प्रायः पेचिश, पेट एवं सरदर्द तथा अनेक प्रकार के रोग आधेरते हैं। जिन्हें रात में सुख एवं शांति की निद्रा न आवे, बेचैनी हो, स्वप्न दिखायी, पड़े, जिह्वा का स्वाद खराब जान पड़े,पाखाना साफ न हो, उन्हें समझ लेना चाहिए कि आज का भोजन कल्याणकर नहीं हुआ / इन बातों पर विचार करके प्रत्येक भादमी स्वयं अपनी खूराक का वजन निश्चित कर सकता है। कितने ही प्रादमियों की सांस से दुर्गंध निकलती है, ऐसे श्रादमियों का मेदा खराब रहता है। उन्हें खूब सोच समझ कर थोड़ा हलका और शीघ्र पचनेवाला भोजन करना चाहिए / जो लोग अधिक खाते हैं और उसे पचाने की शक्ति नहीं रखते धीरे धीरे उनका खून भी खराब हो जाता है, फुन्सियां और फोड़े निकल आते हैं, नाक तथा मुंह पर दाने पड़ जाते हैं / इन प्राकृतिक चेतावनियों पर अभ्यास-दोष तथा लापरवाही के कारण लोग ध्यान नहीं देते जिसका फल यह होता है कि रोग बढ़ता जाता है। कितनों को कच्ची डकारें पाया करती हैं। कितनों को वायु निकलती है, इन सबका अर्थ यही है कि पेट में खराबी आगयी और पाचनशक्ति को ठीक करने के लिए भोजन में विशेष सावधानी की आवश्यकता है / सब रोगों की जड़ पाचन का न होना है। इसलिए अधिक तथा देर से पचने वाले (पूरी, कचौरी मिटाई, मलाई, इत्यादि) भोजन को छोड़कर हल्का, सादा और शीघ्र पचने वाला भोजन करना चाहिए / प्रायः प्रीतिभोजनों स्योहारों उत्सवों तथा ब्याहों में हमें सादा भोजन नहीं मिलता। ऐसी जगहों में बहुत थोड़ा और समझ कर खाना चाहिए। स्वाद के वश में होकर आवश्यकता से अधिक खालेने की आदत
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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