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________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (105) दोनों को बराबर वृराक मिलनी चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि गद्दीधरों और मजदूरों के भोजन के परिमाण में अधिक अन्तर हो / पर इतना सब लोग जानते हैं कि निर्बल और बलवान के भोजन के परिमाण में भिन्नता होनी चाहिए / पुरुष स्त्री, युवक वृद्ध तथा बालक युवक की खुराक में अन्तर होता है / एक लेखक का यह कहना है कि यदि हम अपने भोजन को इतना कुचलें कि मुह में ही उसका पूरा रस बनकर लार द्वारा वह गले के नीचे उतर जाय तो हम पांच से लेकर दस रुपये भर की खूराक से अपना निर्वाह कर सकते हैं / इसने स्वयं हजारों प्रयोग किये हैं / उसकी पुस्तकों की हजारों प्रतियां बिक चुकी हैं / लोग उन्हें खूब पढ़ते हैं / ऐसी दशा में भोजन का परिमाण निश्चित कर देना असंभव है। अधिकांश डाक्टरों ने लिखा है कि सैकड़े पीछे निन्नानबे मनुष्य आवश्यकता से अधिक खाते हैं / यह एक ऐसी साधारण बात है कि डाक्टरों के बिना लिखे भी लोग इसे श्रासानी से समझ सकते हैं। लोग स्वाद के फेर में पड़कर उससे अधिक भोजन कर जाते हैं जितना उनकी पाचनशक्ति पचा सकती है। सारी बीमारियों की जड़ यही बात है। भोजन के सम्बंध में दो बातों पर खूब ध्यान देना चाहिए / एक तो यह कि भोजन हलका, सादा और सुरुचिवर्द्धक हो और दूसरा यह कि वह आवश्यकतानुसार ही हो, अधिक नहीं। भोजन करते समय खुराक को खूब चबाने की जरूरत है। ऐसा करने मे हम थोड़ी ग्वराक से भी अधिक सार भाग ग्रहण कर सकेंगे और हमारा शरीर हलका एवं पुष्ट रहेगा / इससे भोजन जल्दी पचता है, पाखाना साफ होता है, तबीयत हल्की
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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