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________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला ~~ सामना किया। वे बड़े ज़ोर से ढोल बजाते हुए पानी फेंक कर तथा तम्बाकू चबाते हुए हमला करते थे। निकट पाने पर उन्होंने तम्बाकू के रस को स्पेन के सिपाहियों की आंखों में फेंकना प्रारंभ किया। उस जमाने में बम गोले और हवाई जहाज न थे, हाथापाई होती थी, अतएव तम्बाकू चबाने बाले जंगली सहज ही स्पेन के सिपाहियों की आंखों में उसका रस डालकर उन्हें अन्धा कर देते थे। उन जंगली जातियों के लिए स्वत्वरक्षा का यह एक अच्छा साधन था। जब स्पेन वाले उस देश को विजय करके स्वदेश लौटे तो उन्होंने तम्बाकू चबाने की श्रादत का यूरप में प्रचार किया। ... अब यूरोपीय व्यापारियों की बन पायी। स्वार्थ-साधन का अच्छा अवसर देखकर उन्होंने इसका प्रचार करना प्रारंभ कर दिया / नाना प्रकार से तम्बाकू का दुरुपयोग होने लगा। तम्बाकू में खुशबू भी मिलायी जाने लगी / उसकी प्रशंसा में कवियों ने कविताएँ भी लिख डालीं। यूरप के ये स्वार्थी व्यापारी इतना ही करके चुप नहीं रहे / उन्होंने एशिया में भी इस जंगली प्रथा को फैलाने की बड़ी कोशिश की। सबसे पहले मुगल सम्राट अकबर को कुछ व्यापारियों ने यह तम्बाकू उपहार स्वरूप दी। फिर धीरे धीरे सर्वत्र इसने अपना अधिकार कर लिया। अब क्या है, अब तो काशी के धर्माभिमानी पण्डितों से लेकर सभ्य बाबुओं तक को इसने अपना दास बना लिया है। कोई सुँघनी सूघता है। कोई सुरती खाता है, कोई तम्बाकू पीता है, कोई सिगरेट और सिगारफूकता है / बड़ी बड़ी दुकाने खुल गयी हैं / खूब विज्ञापनबाजी होती है। गरीब मजदुर खोखों करते हुए इसे पीते हैं और आजकल के बाबू भकाभक धुमा उड़ाते हैं / छोटे छोटे बच्चों तक में बीड़ी, सिगरेट का शौक
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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