SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला "प्रारंभ में कसरत करने में शरीर अकड़ने लगता था / बहुत बार मैं श्राधी कसरत करके ही छोड़ देता / अखाड़े में आना कठिन मालूम पड़ता किन्तु मैंने सफल होने की प्रतिज्ञा करली थी। सोच लिया था कि यदि शारीरिक शक्ति न प्राप्त कर सका तोमर जाऊँगा / अन्त में मुझे सफलता मिलने लगी। धीरे धीरे कसरत बढ़ने लगी। उन दिनों में सबेरे ही उठकर घर से तीन कोस तक दौड़ता फिर अखाड़े में जाकर खूब कुश्ती लड़ता। लड़कर फिर तीन कोस दौड़ते हुए घर आता और वहां अपने चेलों के साथ कुश्ती लड़ता / उस समय मेरे अखाड़े में डेढ़ सौ जवान थे / उनसे कुश्ती करने के बाद सुस्ताकर तैरने जाता / पीछे तो इतनी भी ताकत न रह जाती कि खड़ा रह सकूँ। मेरे साथी मुझे ऊपर लेजाते और मेरा लंगोट भी वे हो खोलते / फिर शाम को पन्द्रह सौ से लेकर तीन हजार तक डण्ड और पांच हजार से लेकर दस हजार तक बैठक करता / यही मेरी रोजाना कसरत थी। इसका फल यह हुआ कि सोलह वर्ष की उम्र में इतनी ताकत हो गयी कि नारियल के पेड़ पर जोर से धक्के मारता तो दो तीन नारियल टूटकर भद भद गिर पड़ते।" उस समय राममूर्ति का भोजन भी गजब का था / आजकल के विद्यार्थी तो जरासा अधिक भोजन करते ही पेट की शिकायत और हाजमे की खराबी का रोनारोने लगते हैं। इसका कारण यही है कि जो भोजन वह करते हैं उसे पचाकर खून बना डालने वाली शक्ति उनमें नहीं रहती, पर राममूर्ति के लिये यह बात न थी। दही उनका प्यारा भोजन है। दिन के बारह बजे कसरत श्रादि से निवट कर वह बादाम का शरबत पीते / घंटे दो घंटे बाद दो तीन सेर दही, तरकारी, भात तथा आध सेर घी खाते,रात में
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy