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________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला लित न हुआ तो उसने क्रुद्ध होकर तलवार से शरीर पर आघात करना प्रारंभ किया। फिर भी कामदेव ने ध्यान न छोड़ा। वह जानते थे कि संकट में ही धर्म और धैर्य की परीक्षा होती है। कामदेव ध्यान में लगे रहे / देव ने ऋद्ध होकर हाथी का रूप धारण किया और उन्हें गगन-विकम्पनकारी गर्जन के साथ उठाकर पटक दिया और पैर से कुचला, फिर भी कामदेव विवलित न हुए / पर देव बड़ा दुष्ट था / इस वार उसने विषधर सांप का रूप धारण किया और गले में लिपटकर काटने लगा / इस वार भी कामदेव का ध्यान न टूटा / अंत में देव पराजित हुआ। वास्तव में वह कामदेव की ही विजय नहीं थी वरन् धर्म और अधर्म के संग्राम में धर्म की विजय धी; पशुबल पर आत्म-बल की विजय थी; राक्षस पर देवता की विजय थी। ऐसे विजेता केवल प्रात्मकल्याण ही नहीं करते, जगत् के सामने आदर्श उपस्थित करके भद्र प्राणियों को एक प्रकार का बल भी प्रदान करते हैं जिसकी सहायता से वे हृदय में उत्पन्न होने वाली विकारमयी कुप्रवृत्तियों से अपनी रक्षा करते हैं। ऐसे ही स्वपरकल्याणरत पुरुष जगत् में अभिवन्दनीय होते हैं। अंत में हारकर उसी देव ने देववेश धारण कर कामदेव की प्रशंसा की और कहा-"तुम्हारा जीवन धन्य है, तुम कृतकृत्य और स्तुत्य हो।" दूसरे दिन जब कामदेव भगवान महावीर के दर्शनार्थ गये तो भगवान ने उपस्थित साधु और श्रावकों को कामदेव की भांति धर्म में दृढ़ होने का उपदेश किया।
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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