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________________ हिन्दी-बाल-शिक्षा (57) यदि हम श्रावधर्म से वंचित रहें तो अभागे ही हैं / हे भद्रे! तू भी प्रभु से श्राविकाधर्म स्वीकार करके कृतकृत्य होजा / ऐसा अवसर बारबार नहीं आता।" भद्रा अत्यन्त प्रसन्न हुई और शीघ्र ही श्राविका हो गयी। कामदेव का अपनी पत्नी से कैसा स्वच्छ स्नेह था, इसका आभास इस घटना से मिलता है। वास्तव में उस समय का दाम्पत्य सम्बंध अाजकल की तरह तुच्छ वासनाओं की क्षणिक तृप्ति के लिये नहीं होता था। बरन धर्म के सब अंगों का पालन करने के लिये होता था। . इस प्रकार श्रावकधर्म का पालन करते हुए कामदेव ने चौदह वर्ष विता दिये / एक दिन उसने श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं के पालन करने का विचार किया और अपने बंधु बांधवों को भोजन आदि उचित सत्कारों से सत्कृत करके उनकी भाशा ले ज्येष्टपुत्र को घर का सारा कार्य सौंपकर ग्यारह प्रतिमा (पडिमा) करनी स्वीकार की। ___ जब कामदेव रात में कायोत्सर्ग में खड़े होकर ध्यानस्थ हो रहे थे तो एक देव पिशाच की आकृति बनाकर उनके पास आया और बोला-अरे ढोंगी कामदेव! ढोंग रचकर लोगों को ठगने बैठा है। मैं तेरी चालाकी खूब जानता हूँ / इस बगुला भक्ति से तू स्वर्ग और मुक्ति की कामना करता है ? मूढ़ ! अपना भला चाहता है तो यह ढोंग छोड़दे अन्यथा तेरी हड्डियां चूर 2 कर दूंगा।" जब कामदेव इन भयंकर वाक्यों से तनिक भी विच
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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