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________________ (46) सेठियाजैनग्रन्थमाला नहीं होसकता, जो उपकार नहीं मानता, वह कृतघ्नी एवं पातकी माना जाता है / इसलिए आप कृतघ्नी न बनो, कृतज्ञ बनो। .. 11 अनेक शास्त्र तथा कला- कौशल के ज्ञाता होकर भी अहंकार न करो, क्योंकि अहंकार मनुष्य को नीचे गिरा देता है / 12 यदि शिक्षक आदि से कोई गलती हो जावे तो उनका तिरस्कार न करो, 13 अपने सहपाठियों तथा मित्रों के साथ प्रेम रक्खो; उनके साथ कभी लड़ाई झगड़ा तथा वैमनस्य (मनमुटाव) न करो; बल्कि सहोदर भाई के समान बर्ताव करो, ऐसा करने से वे माप को हर काम में सहायता देंगे एवं तुम प्रेम-देवता के उपासक बनकर अपने समाज तथा देश और दूसरे देशों का भला कर सकोगे। 14 किसी उपकारी से यदि मनमुटाव हो जाय तो उसकी पीठ पीछे निन्दा न करो, उस के उपकार को याद कर हमेशा कृतज्ञ बने रहो / क्योंकि साधारण जन की निन्दा करना पाप है, और उपकारी की निन्दा करना महापाप है। 15 किसी को गाली गलोच न दो तथा किसी के साथ हाथापाई न करो। ये सब अशिष्ट और असभ्य पुरुषों के काम हैं, आपके नहीं। 16 सेवा आदि कार्य का भार जो तुम्हें सौंपा गया हो, उसे प्राणप्रण से पूरा करो। उस में कितनी ही कठिनाइयाँ उप
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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