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________________ मीति-शिक्षा-संग्रह अधूरा कभी नहीं छोड़ना चाहिए। अपने विचारों को स्थिर बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। 4 जिस से असभ्यता प्रकट होती हो; ऐसा जल्दी नहीं चलना चाहिए ! - 5 बैठे या खड़े हुए विना कारण हाथ पैर न हिलाने चाहिए। 6 अनहोने, असभ्य, अप्रिय, और अविचारित (अंडबंड) वचन न बोलने चाहिए / किन्तु हित, मित और प्रिय बोलना चाहिए। . 7 विद्यार्थियों को अपना हृदय, सरल बनाना चाहिए छलकपट को लेशमात्र भी स्थान नहीं देना चाहिए / जो छात्र निष्कपट होते हैं, वे ही श्रेष्ठ गिने जाते हैं और उनका सब विश्वास करते हैं। 8 किसी का अपमान न करो; क्योंकि मानहानि का दुःख मृत्यु से भी अधिक होता है / ___ क्षमा को भूषण बनाओ, कितने ही क्षोभ उत्पन्न करने वाले कार गा मिले; लेकिन कभी क्रोध न करो, हमेशा शान्तचित्त रहो। 10 शिक्षक, माता-पिता तथा मित्र आदि के उपकार को कभी न भूलो; क्यों कि इन के उपकार से मनुष्य कभी उरिन
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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