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________________ (40) सेठिया जैन ग्रन्थमाला पीटर ने फौरन उस भयानक शब्द का अर्थ जान लिया / उसको पता लग गया कि समुद्र दीवार के छेद से अन्दर घुसना चाहता है / यदि दीवार के बचाने का शीघ्र कोई उपाय न किया गया तो सबेरा होते होते हालेगड को पवित्र भूमि जलमग्न हो जायगी। __ वह छोटा बालक क्या कर सकता था? उसने एक मिनट विचार किया और तत्क्षण उस स्थान की ओर दौड़ा जहां से पानी चू रहा था / अपने नन्हे हाथ को दीवार के घर में डालकर सहायता के लिये पुकारा परन्तु कोई नहीं आया। पानी का चूना बंद हो गया / बार बार उसने सहायता के लिये पुकारा परन्तु कोई न पाया। घटाटोप अंधकार हो गया था. पुकारते पुकारते वह थक गया / उस में पुकारने की शक्ति न रह गयी; शीत ने उसके शरीर को बिलकुल सुन्न कर दिया परन्तु वाह रे वीर! उसने अपने उन नन्हे और कमजोर हाथों से अपार समुद्र को रोक रक्खा / प्रातःकाल हुआ। लोग इधर उधर जाने लगे। उन्होंने उस बालक को अपनी जगह पर स्थिर देखा / यद्यपि वह शान शुन्य था, सर्दी से उसका शरीर अकड़ गया था परन्तु अपने देश की रक्षा के लिये वहीं डटा था / उसके पिता ने उसे छाती से लगाया / दीवार की मरम्मत की गयी। सारे देश में पीटर का नाम प्रसिद्ध हो गया। धन्य है वह देश, जहां के बच्चों को माता पिता देश-सेवा की शिक्षा देते हैं। उसी जाति का भविष्य सुंदर है, जिसके बच्चे पीटर की तरह जाति के हित के लिये अपने प्राणों को तुच्छ समझते हैं।
SR No.023532
Book TitleNiti Shiksha Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBherodan Jethmal Sethiya
PublisherBherodan Jethmal Sethiya
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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