________________ सेठिया जैन ग्रन्थमाला विचारों को लिख दिया जाय तो उनसे सब लोग सब समय लाभ उठा सकते हैं / तात्पर्य यह कि वक्तृत्व काप्रभाव संकुचित और अस्थायी होता है परन्तु निबंध इत्यादि का विस्तृत और चिरस्थायी / इस दृष्टि से वक्तृत्व की अपेक्षा लेखन का माहा. स्य ही अधिक है। भलीभांति विचार किया जाय तो सहज ही. बात हो जायगा कि लेखन के विना जगत् का काम चलना कठिन ही नहीं वरन् असंभव है। यदि प्राचीन ऋषिमहर्षियों ने अपना प्रतिभा--प्रसून साहित्योद्यान भांति-भांति के सरस और अर्थ-गौरव-सौरभ--संयुक्त ग्रंथ-कुसुमों से सम्पन्न न किया होता तो आधुनिक विद्वान--मधुकर किस का रसास्वादन करके प्रफु. दिजत होते? यह लेखनप्रणाली का ही पुण्य-प्रताप समझना पाहिए कि उसका अनुसरण करके आज कल के अनेक लेखकों ने अथाह शास्त्र-समुद्र मे अमूल्य तत्त्वरत्नों को निकाल कर जगत् में ज्ञान का प्रकाश फैलाया है। परन्तु जैसे वक्तृत्वकी अपेक्षा. लेखन का माहात्म्य अधिक है, वैसे ही उस में कठिनाई और उत्तरदायित्व भी अधिक है। किसी बात को कह देना सहज है पर लिख देना कठिन / कही हुई बात में परिवर्तन हो सकता है परन्तु लिख देने पर हाथ बंध जाता है। यदि लिखने में शब्द अर्थ या प्रसंग सम्बन्धी कोई भूल रह जाय तो हास्यास्पद भी होना पड़ता है / अतपय जब हम लिखने बैठे तो पहले ही यह विचार कर लें कि हमें किन किन बातों पर प्रकाश डालना है? जिस विषय पर हम निबंध लिखना चाहते हैं, उस विषय पर किस किस ग्रंथ में क्या क्या पढ़ा है? इन सब बातों का विचार करने से जो कल्पनाएं उठे, उन्हें एक कागज पर लिखते जायँ और उस विषय के विभाग करके उनमें उन्हें यथायोग्य स्थान दें / हृदय